त्यौहार

जन्माष्टमी 2017: इस कारण से भगवान श्रीकृष्ण को पसंद है माखन मिश्री और 56 भोग 

भगवान विष्णु के 8वें अवतार का जन्मोत्सव देश-विदेश में बड़े धूमधाम से मनाने की तैयारियों जोरो से चल रही हैं। हिन्दू पंचाग के अनुसार का जन्म भाद्रपद की अष्टमी की मध्यरात्रि को हुआ था। भगवान बचपन में बेहद ही शरारती बच्चे थे और उनको खाने का बहुत ही शौक था। माता यशोदा हर रोज उनको अपने हाथों से तरह-तरह के पकवान बना कर खिलाया करती थीं। आइए जानते है भगवान श्रीकृष्ण को खाने में क्या-क्या पंसद होता है। यह भी पढ़े- भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम माखन चोर भी है। कृष्ण जी को बचपन से ही मख्खन खाना बेहद पंसद है। इसके लिए वह पूरे गांव में मख्खन को चुरा कर खा जाया करते थे। भगवान श्रीकृष्ण को उनके भक्त माखन के अलावा उन्हें प्रसन्न करने के लिए माखन मिश्री का भोग लगाते है। यह भोग भगवान को बहुत पसंद है। इसके अलावा भगवान को 56 तरह के भोग भी लगाया जाता है। भगवान को भोग लगाने के लिए भक्त 56 भोग चढ़ाते हैं। 56 भोग लगाने के पीछे कथा है। कहा जाता है कि इंद्र के प्रकोप से सारे ब्रजवासियों को बचाने के लिए उन्होने पूरा गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। ऐसा करने के लिए उन्होने सात दिनों तक अन्य जल ग्रहण नहीं किया था।  भगवान श्रीकृष्ण हर रोज भोजन में आठ तरह की चीजें खाते थे, लेकिन सात दिनों से उन्होंने कुछ भी नहीं खाया था। इसलिए सात दिनों के बाद गांव का हर निवासी उनके लिए 56 तरह के पकवान बनाकर लेकर आया

कजरी तीज आज, पति की लंबी आयु के लिए करें ये उपाय

भादों महीने की कृष्ण तृतीया को कजरी तीज के रूप में मनाई जाती है। इसे कई नामों से जाना जाता है जैसे सतवा तीज, सातुडी तीज और सौंधा तीज। ये त्योहार सुहागिन और कुंवारी कन्याओं के लिए काफी महत्व रखता है। इस दिन पत्नी अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती है। साथ ही अच्छे वर के लिए कन्याएं यह व्रत जरुर रखती है। माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी इसके लिए उन्होनें 108 साल तक कठोर तपस्या की थी और भवगाव शिव को प्रसन्न किया था। शिवजी ने पार्वती से खुश होकर इसी तीज के दिन अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इस दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा करते हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं और कन्याएं एक साख कजरी गीत गाती है और गीत संगीत का कार्यक्रम करती है। यह व्रत विशेषकर उत्तर भारत के हिस्सो में मनाया जाता है। इस दिन गेंहू,जौ,चना और चावल से सत्तू में घी मिलाकर तरह तरह के पकवान बनाए जाते है और गाय की पूजा की जाती है। इस दिन नीम की पूजा की जाती है। कन्याएं व सुहागिनें व्रत रखकर संध्या को नीम की पूजा करती हैं। कन्याएं सुन्दर,सुशील वर तथा सुहागिनें पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। वे तीज माता की कथा सुनती हैं। मन्दिरों में देवों के दर्शन करती हैं। इसके बाद व्रत तोड़ती है।

जन्माष्टमी के दिन करें ये 5 उपाय, मिलेगा धन और यश का लाभ

कुछ दिनों के बाद पूरे देश में कृष्ण जन्माष्टमी धूम-धाम से मनाया जाएगा। भादों माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 15 अगस्त,मंगलवार को है। अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए जन्माष्टमी के दिन कुछ उपाय करने से शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने से माता लक्ष्मी भी प्रसन्न हो जाती हैं।  यह भी पढ़े- धन प्राप्त करने के लिए जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद राधा-कृष्ण मंदिर में जाकर भगवान कृष्ण को पीले माला अर्पित करना चाहिए। भगवान कृष्ण को विष्णु का अवतार माना गया है। जन्माष्टमी के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान कृष्ण का अभिषेक करें। इस उपाय को करने से भगवान कृष्ण के साथ माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है और मन की मुराद पूरी होती है। भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा पाने के लिए सफेद मिठाई, साबुदाने या फिर खीर बनाकर भोग लगाएं और उसमें मिश्री और तुलसी के पत्ते डालें। इससे भगवान श्रीकृष्ण जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं। आपके किसी भी काम में कभी कोई बाधा न आए तो इसके लिए जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण मंदिर में जटा वाला नारियल और 11 बादाम चढ़ाएं। नौकरी में तरक्की के लिए जन्माष्टमी के दिन खीर बनाकर कन्याऔं को खिलाएं। ऐसा करने से भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

सावन हुआ खत्म, अब भगवान कृष्ण का महीना भादों हुआ शुरू

सावन का महीना भगवान शंकर होता है तो भादों का महीना माना जाता है। 8 अगस्त 2017 से 7 सितम्बर 2017 तक भादों का माह रहेगा। भादों महीना भगवान श्रीकृष्ण के जन्म लेने से संबंधित है। श्रीकृष्ण ने भादों के महीने के में भगवान विष्णु के 8वें अवतार के रूप में रोहिणी नक्षत्र के वृष लग्न में जन्म लिया था। भादों का माह भी, सावन की तरह ही पवित्र माना जाता है। इस माह में कुछ विशेष पर्व पड़ते हैं जिनका अपना-अपना अलग महत्त्व होता है। यह भी पढे़-  कजरी तीज- भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कजरी तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस त्यौहार को उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में विशेष रूप से मनाया जाता है। 10 अगस्त के दिन गुरुवार को यह त्यौहार मनाया जायेगा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी- भादों महीने की कृष्ण अष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के रूप में मनाया जाता है। इस बार यह त्योहार 14 और 15 अगस्त दोनों दिन मनाया जाएगा। पूरे भारत में जन्माष्टमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। आधी रात को कृष्ण का जन्म होता है।  गणेश चतुर्थी- जन्माष्टमी के बाद गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा,उपवास किया जाता है। गणेश चतुर्थी को चन्द्र दर्शन नहीं करने चाहिए। परिवर्तनी एकादशी- भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में देवझूलनी एकादशी मनाई जाती है। देवझूलनी एकादशी में विष्णु जी की पूजा, व्रत, उपासना करने का विधान है। देवझूलनी एकादशी को पदमा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

जानिए क्यों पत्नी ने बांधी थी पति को राखी, फिर शुरू हुआ रक्षाबंधन का त्योहार

का त्योहार आमतौर पर भाई-बहनों का त्योहार माना जाता है। इस दिन बहनें भाई की कलाईयों में राखी बांधकर उन्हें लंबी उम्र की दुआ देती हैं, लेकिन रक्षाबंधन का एक बड़ा रहस्य यह है कि इस त्योहार की शुरुआत भाई-बहन ने नहीं, बल्कि एक पति पत्नी से शुरू किया गया था। इसके बाद से संसार में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा। इस संदर्भ में जो कथा है उसका उल्लेख भविष्य पुराण में मिलता है। ये भी पढ़ें-  भविष्य पुराण के अनुसार एक बार दानवों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवताओं की सेना दानवों से पराजित होने लगी। देवराज इंद्र की पत्नी देवताओं की लगातार हो रही हार से घबरा गयी और इंद्र के प्राणों रक्षा के उपाय सोचने लगी। काफी सोच-विचार करने के बाद इन्द्र की पत्नी शचि ने तप करना शुरू किया। इससे एक रक्षासूत्र प्राप्त हुआ। शचि ने इस रक्षासूत्र को इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इससे देवताओं की शक्ति बढ़ गयी और दानवों पर विजय पाने में सफल हुए। श्रावण पूर्णिमा के दिन शचि ने इंद्र को रक्षासूत्र बांधा था। इसलिए इस दिन से रक्षा बंधन का त्योहार बनाया जाने लगा। भविष्य पुराण के अनुसार यह जरूरी नहीं कि भाई-बहन अथवा पति-पति रक्षा बंधन का त्योहार मना सकते हैं। दरअसल आप जिसकी भी रक्षा एवं उन्नति की इच्छा रखते हैं उसे रक्षा सूत्र यानी राखी बांध सकते हैं। इसलिए पुरोहित लोग आशीर्वादवाचन के साथ अपने यजमान की कलाई में राखी बांधा करते हैं।

कुछ ही देर में खत्म हो जाएगा राखी बांधने का शुभ मुहूर्त, जल्द बहनें बांधे राखी

आज पूरे देश में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा रहा है। भद्रा काल के चलते राखी बांधने का शुभ मुहूर्त सुबह 11:05 से लेकर दोपहर 1:28 तक यानि ढाई घंटे तक ही राखी बांधी जाएगी। भद्रा और सूतक के दौरान रक्षाबंधन नहीं मनाया जा सकता है। इस बार रक्षाबंधन के दिन चन्द्रग्रहण के साथ भद्रा का भी साया रहेगा, जिसके चलते राखी बांधने के लिए के केवल 2 घंटे और कुछ मिनटों तक का ही समय मिलेगा। ज्योतिषियों के अनुसार यह योग है जिसके चलते ग्रहण और भद्रा के समय को ध्यान में रखते हुए राखी के लिए बहुत कम समय मिल रहा है। ज्योतिषित गणना के अनुसार रक्षाबंधन पर सोमवार को ग्रहण रात्रि 10.

इन 7 कारणों से भी मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्योहार

रक्षाबंधन के त्योहार को आमतौर पर भाई बहनों का त्योहार माना जाता है लेक‌िन इस त्योहार को मनाने का महज यही कारण नहीं है, इसके पीछे और भी कई वजहें हैं। पहली वजह पुराणों की कथा में म‌िलती है इसके अनुसार रक्षासूत्र यानी राखी का न‌िर्माण करने वाली देवी शच‌ि हैं। यह देवराज इंद्र की पत्नी हैं। भव‌िष्य पुराण की कथा के अनुसार देवलोक पर असुरों ने अाक्रमण कर ‌द‌िया। युद्ध में असुरों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। ऐसे समय में देवराज इंद्र की रक्षा के ल‌िए देवी शच‌ि ने कच्चे धागे को अभ‌िमंत्र‌ित करके श्रावण पूर्ण‌िमा के द‌िन देवराज इंद्र की कलाई में बांध द‌िया। इसके बाद इंद्र ने असुरों को पराज‌ित कर द‌िया। तभी से यह त्योहार मनाने की परंपरा चली आ रही है। दूसरी कथा वामन पुराण में म‌िलती है। इस पुराण में राखी के बारे में जो कथा म‌िलती है उसके बाद से राखी भाई बहनों का त्योहार बन गया। इस पुराण में बताया गया है क‌ि भगवान व‌िष्‍णु के वामन अवतार को राजा बल‌ि अपने साथ पाताल लेकर चले गए। वामन बने भगवान व‌िष्‍णु अपने द‌िए वरदान के कारण पाताल को छोड़कर बैकुंठ नहीं जा सकते थे। ऐसे में देवी लक्ष्मी ने श्रावण महीने की पूर्ण‌िमा त‌िथ‌ि को एक बूढ़ी मह‌िला का भेष बनाया और पहुंच गयी पाताल लोक में राजा बल‌ि के पास। राजा बल‌ि ने गरीब और कमजोर बूढ़ी स्‍त्री को देखा तो उसे बहन बना ल‌िया। देवी लक्ष्मी ने राजा बल‌ि की कलाई में रेशम के धागे बांधे तो राजा बल‌ि ने उपहार मांगने के ल‌िए कहा। देवी लक्ष्मी ने झट से वामन को वरदान के बंधन से मुक्त करके बैकुंठ लौट जाने का आशीर्वाद मांग ल‌िया। इस तरह देवी लक्ष्मी ने राखी को भाई बहन का त्योहार बना द‌िया।राखी को लेकर महाभारत में एक कथा का उल्लेख है ज‌िसमें एक साख्य भाव से रक्षा बंधन मनाने का ज‌िक्र आया है। श‌िशुपाल के वध के समय अपने ही सुदर्शन चक्र से श्री कृष्‍ण की उंगली कट गई। द्रौपदी ने जब देखा क‌ि वासुदेव श्री कृष्‍ण की उंगली में खून टपक रहा है तो उन्होंने झट से अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और श्री कृष्‍ण की उंगली में बांध द‌िया ज‌िससे खूब का टपकना बंद हो गया। यह घटना भी सावन महीने की पूर्ण‌िमा त‌िथ‌ि को हुआ माना जाता है। राखी का त्योहार मनाने का एक अन्य कारण भी महाभारत में द‌िया गया है। यह कथा है महाभारत युद्ध के समय का। कथा है क‌ि भगवान श्री कृष्‍ण ने युध‌िष्ठ‌िर से कहा क‌ि तुम्हारी रक्षा करने वाले तुम्हारे सैन‌िक हैं। इसल‌िए इनके साथ रक्षाबंधन का त्‍योहार मनाओ। श्री कृष्‍ण की सलाह पर युध‌‌िष्ठ‌िर ने अपने सैन‌िकों के संग राखी का त्योहार मनाया। यही कारण है क‌ि आज भी लोग सैन‌िकों के साथ रक्षाबंधन का त्योहार मनाते हैं।राखी से जुड़ी सबसे आधुन‌िक कथा मुगल शासक हुमायूं और च‌ितौड़ की रानी कर्णावती की है। गुजरात के शासक बहादुर शाह से अपने राज्य और जनता की रक्षा के ल‌िए रानी ने हुमायूं को राखी भेजा। हुमायूं ने भी राखी की लाज रखते हुए रानी कर्णावती की सहायता की। आधुन‌िक युग में राखी के महत्व को स्‍थाप‌ित करने में इस कथा ने भी बड़ी भूम‌िका न‌िभाई। वैसे रक्षाबंध्‍ान के अलावा भी इसद‌िन का बड़ा महत्‍व है।रक्षाबंधन का त्योहार इसल‌िए भी मनाया जाता है क्योंक‌ि इसी ‌द‌िन भगवान व‌िष्‍णु के हयग्रीव अवतार का जन्म श्रवण नक्षत्र में हुआ था। वैष्‍णव धर्म में हयग्रीव भगवान के जन्म का उत्सव श्रावणी उत्सव के रूप में मनाया जाता है।चार वेदों में सामवेद की उत्पत्त‌ि भी श्रावण पूर्ण‌िमा के द‌िन हुआ माना जाता है। माना जाता है क‌ि इसी द‌िन व‌ितस्ता और स‌िंधु नदी के संगम भी भगवान व‌िष्‍णु ने पहली बार सामवेद का गायन क‌िया था।

भद्राकाल में क्यों नहीं बांधते है राखी, भगवान शिव और रावण से जुड़ा है रहस्य

सावन महीने की पूर्णिमा को का त्यौहार मनाया जाता है इस बार यह पर्व 7 अगस्त को मनाया जाएगा। इस बार के रक्षाबंधन में के साथ भद्रा का भी साया होगा। शास्त्रों के अनुसार भद्राकाल के समय राखी नहीं बांधनी चाहिए क्यों इसे अशुभ माना जाता है आखिर क्यों के समय राखी नहीं बांधी जाती आइए जानते है इसके पीछे का कारण। यह भी पढ़ें- दरअसल भद्रा और सूतक होने के दौरान को भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि रावण की बहन सूर्पनखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल के लगने के दौरान ही राखी बांधी थी, जिसके कारण रावण का सर्वनाश हुआ था। यही वजह है कि लोग भद्रा के समय राखी नहीं बांधते हैं। इसी तरह एक दूसरी मान्यता है कि भद्रा काल के दौरान भगवान शिव तांडव करते हैं जिसकी वजह से वे काफी गुस्से में होते हैं। इस दौरान महादेव के क्रोध होने के कारण कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा की नजर रहेगी जिस कारण से 11 बजकर 4 मिनट के बाद ही कलाई पर राखी बांधने की रस्म शुरू होगी। भद्रा को शुभ कार्य के लिए अशुभ माना जाता है, इसलिए भद्रा के समाप्त होने के बाद राखी बांधना शुभ फलदायी रहेगा।

आज इस विशेष योग में करें ये आसान उपाय, दूर होगा शनि का प्रभाव

धर्मग्रंथों के अनुसार को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वीद प्राप्त करने के लिए प्रदोष का व्रत किया जाता है। प्रदोष व्रत चन्द्र मास की दोनों त्रयोदशी के दिन किया जाता है। 5 अगस्त को शनिवार है और इसी दिन प्रदोष व्रत है। सावन के महीने में शनि प्रदोष को काफी शुभ माना जाता है इस दिन कुछ विशेष पूजा-पाठ करने से महादेव के साथकी भी कृपा मिलती है। शनि प्रदोष के दिन शिवालयों पर जाकर शिवलिंग पर बिल्वपत्रों पर लाल चंदन से ऊं नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाए। ऐसा करने आप पर भगवान शिव की कृपा मिलेगी। शनि प्रदोष के दिन जीवन में सुख-समृद्धि पाने के लिए किसी गाय को रोटी और हरा चारा खिलाएं। ऐसा करने से जीवन में परेशानियां कम होने लगती है। शनि प्रदोष पर शनि मंदिर में जाकर शनिदेव को तिल से मिला हुआ तेल चढ़ाए साथ ही एक काले कपड़ें में काले उड़द को बांध कर किसी नदी या कुएं में प्रवाहित करें। अगर आपके ऊपर शनि की साढ़े साती का प्रभाव चल रहा है तो इस दिन सुबह और शाम को पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक जलाएं। ऐसा करने शनि का प्रभाव आपकी कुंडली से कम होने लगता है।

चन्द्रग्रहण और भद्रा का न हो आप पर असर इसलिए इस खास समय पर बांधे राखी

भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक का यह त्यौहार इस बार 7 अगस्त 2017 को मनाया जाएगा। इस बार का रक्षाबंधन कई मायनों में खास रहेगा। 12 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है कि रक्षाबंधन के दिन पड़ रहा है। साथ ही इस दिन भद्राकाल भी रहेगा और सावन का आखिर सोमवार भी रहेगा। इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा की नजर रहेगी जिस कारण से 11 बजकर 4 मिनट के बाद ही कलाई पर राखी बांधने की रस्म शुरू होगी। भद्रा को शुभ कार्य के लिए अशुभ माना जाता है, इसलिए भद्रा के समाप्त होने के बाद राखी बांधना शुभ फलदायी रहेगा। इस बार का रक्षाबंधन खास होने की एक और वजह है दरअसल इस दिन सावन का पवित्र अंतिम सोमवार है। सावन का अंतिम सोमवार को होने के कारण काफी शुभ माना गया है।