धर्म

सोमवार को भगवान शिव और गणेशजी की एक साथ करें पूजा ,जरूर पूरी होगी मनोकामना

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार सोमवार को भगवान शिव की पूजा करने का दिन माना जाता है। इस समय भगवान शिव और गौरी के पुत्र जी के जन्मदिन के अवसर पर उनका उत्सव पूरे जोश के साथ मनाया जा रहा है। ऐसे में अगर एक साथ पिता और पुत्र दोनों की आराधना की जाए तो कुंडली के दोष दूर हो जाते है और मनोकामना जरूर पूरी होती है। पढ़ें- सोमवार की सुबह मंदिर में जाकर शिवलिंग में जल और बिल्व पत्र चढ़ाएं साथ ही गणेश जी को दू्र्वा चढ़ाएं। इससे दोनों देवताओं का हमे आशीर्वाद मिलता है। पढ़ें-गणेशजी को मोदक बहुत ही प्रिय होता है इसलिए किसी भी मंदिर में पूजा करते समय गणेशजी को मोदक या बेसन से बने लड्डू चढ़ाए। साथ ही शंकर जी को दूध से शिवलिंग को स्नान कराएं। शिवजी के सामने घी का दीपक जलाएं और ऊं नम: शिवाय का जाप 108 बार करें साथ ही गणेश जी की वंदना करें और ॐ गं गणपतये नम: का जाप भी करें। अपने शत्रु के नाश के लिए नीम की जड़ के गणपति के सामने ‘हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा’ का जप करें। लाल चंदन और लाल रंग का फूल चढ़ाएं। इससे कुंडली में मौजूद दोष का निवारण होता है।

गणेश उत्सव में 'गणपति बप्पा मोरया' के जयकारे क्यों लगाए जाते हैं, जानिए इसके कारण

इस समय में देश में गणेश उत्सव की धूम है। के दिन भक्त अपने- अपने घरों में गणेशजी की मूर्ति की स्थापना करते है और भक्ति में डूबे रहते है। बड़े-बड़े पूजा पंडालों में गणपति की गूंज सुनाई देती है। इस समय हर भक्त के जुबान पर एक ही जयकारा गूंज रहा है 'गणपति बप्पा मोरया'। लेकिन क्या आप जानते है कि गणपति बप्पा मोरया क्यों बोला जाता है। आइए जानते है इसके पीछे का कारण। पढ़ें-  गणपति के जयकारे की कहानी महाराष्ट्र के एक गांव चिंचवाड़ गांव से जुडी है। इस गांव में एक संत पैदा हुए थे जिनका नाम मोरया गोसावी था। माना जाता है भगवान गणेश के आशीर्वाद के बाद ही मोरया का जन्म हुआ था। वह जन्म से ही भगवान गणेश जी भक्ति में लीन रहने लगे थे।

वीजा नहीं मिल पा रहा है तो चले आइए 500 वर्ष पुराने इस मंदिर में

यदि आपका वीजा नहीं बन पा रहा है तो निराश न होएं। जल्द ही आपका वीजा बन बनेगा, लेकिन इसके लिए आपको हैदराबाद जाना बनेगा। किसी सरकारी दफ्तर नहीं, बल्कि मंदिर। वीजा वाले बालाजी मं‌दिर में, जहां लोग वीजा बनने के लिए मन्नत मांगते हैं और इच्छा पूरी होने पर उनके चरणों में अपना वीजा अर्पित करते हैं। हैदराबाद से करीब 40 किलोमीटर दूर ये मंदिर, ओसमान सागर लेक के तट पर चिल्कुर बालाजी मंदिर आ जाएं। इन्हें ही वीजा वाले बालाजी कहते हैं। इस मं‌दिर की स्‍थापत्य कला देखने लायक है, 500 वर्ष पुराना मंदिर जो है। ये भी पढ़ें-  जानकारों के मुताबिक प्राचीन काल में यहां भगवान वेंकटेश बालाजी के भक्त रहजे थे। अपने भगवान के लिए उनकी भक्ति देखने लायक थी। इसी वजह से हर वर्ष वे अपने घर से कोसों दूर तिरुमल बालाजी मंदिर आते थे भगवान के दर्शन करने। एक बार उनकी तबीयत खराब हो गई। तबीयत इतनी खराब थी कि वे अपने भगवान से मिलने मंदिर तक यात्रा नहीं कर सकते थे। ऐसे में भगवान बालाजी ने उनसे सपने में आकर आ कहा है मैं तो तुम्हारे पास के जंगल में रहता हूं और तुम मुझसे मिलने इतनी दूर आते हो। सुबह भक्त भगवान के बताए स्‍थान पर पहुंचा तो उसे वहां एक उभरी हुई जमीन दिखाई दी। वहां पर खुदाई शुरू हुई। इसी में कुदाल बालाजी की मूर्ति पर लग गई और रक्त बहने लगा। रक्त बहते देख भक्त चिंतित हो गया। उसी वक्त आकाशवाणी हुई और कहा गया कि दुध से नहलाकर उसी जगह पर मूर्ति स्‍थापित की जाए। जब भक्त ने दुग्‍धा‌‌भिषेक किया तो उसी समय वहां पर श्रीदेवी और भूदेवी की प्रतिमा भी अवतरित हो गई। तभी से यहां पर तीनों की पूजा की जा रही है।

गणेश चतुर्थी के दिन नहीं करना चाहिए चांद का दर्शन, इस दिन चंद्रदेव को मिला था श्राप

25 अगस्त को गणेश चतुर्थी है और इसके साथ ही 10 दिनों तक गणेश उत्सव की शुरुआत हो जाएगी। शास्त्रों में गणेश चतुर्थी के दिन चांद के दर्शन करने की मनाही है। भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। पढ़ें- एक बार गणेश जी को चंद्रलोक से भोज का आमंत्रण आया। गणेश जी को मोदक खाना बहुत पंसद होता है इसलिए उनका ध्यान मोदक पर ही था। गणेश जी ने वहां जी भर कर मोदक खाए और वापस लौटते समय बहुत से मोदक साथ भी ले आए। मोदक बहुत ज्यादा थे, जो उनसे संभाले नहीं गए। उनके हाथ से मोदक गिर गए, जिसे देखकर चंद्र देव अपनी हंसी नहीं रोक पाए। चंद्रदेव को हंसता देख गणेश जी गुस्से में आ गए । क्रोध में आकर उन्होंने चंद्रदेव को श्राप दे दिया कि जो भी उन्हें देखेगा उस पर चोरी का कलंक लग जाएगा। साथ ही चंद्रमा को श्राप दे दिया कि आज से तुम काले हो जाओगे।तब से ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जो भी कोई चांद के दर्शन करेगा उस पर झूठा आरोप लगेगा। इसलिए भादों महीने की शुक्ल चतुर्थी को चांद के दर्शन नहीं करना चाहिए।

भगवान गणेश की पूजा में इस वजह से चढ़ाई जाती है दूर्वा, राक्षस से जुड़ा है रहस्य

25 अगस्त से गणेश उत्सव की शुरुआत होने जा रही है जो इस बार 10 दिनों के बजाए 11 दिन तक चलेगी। के अवसर पर गणेशजी की पूजा का विशेष महत्व होता है। गणेशजी की पूजा में कई चीजें चढ़ाई जाती है जिसमें दूर्वा का विशेष महत्व होता है। इसके बिना गणेश जी की पूजा अधूरी समझी जाती है। भगवान गणेश को तो दूर्वा काफी प्रिय होती है, लेकिन तुलसी को इनकी पूजा में प्रयोग करने की मनाही होती है। आइए जानते है इसके पीछे का रहस्य। पढ़ें- पुराणो के अनुसार एक असुर रहा करता था जिसका नाम अनलासुर था। जिसने स्वर्ग और पृथ्वी पर सभी को परेशान करता था। वह ऋषि-मुनियों,देवताओं और आम लोगों को जिंदा ही खा जाया करता था। तब सभी देवता इस राक्षस के सर्वनाश के लिए महादेव के पास प्रार्थना करने के लिए कैलाश पर्वत जा पहुंचे। तब शिवजी ने सभी देवी-देवताओं की बात सु्नकर कहा कि अनलासुर का अंत केवल गणेश ही कर सकते हैं। इसके बाद भगवान गणेश ने अनलासुर को निगल लिया जिसकी वजह से उनकी पेट में जलन होने लगी जो शांत नहीं हो पा रही थी। तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठ बनाकर गणेश जी को खाने को दी। तब जाकर उनकी पेट की जलन शांत हो गई। तभी से गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।

गणेश चतुर्थी: देवताओं और गजानंद के बीच हुई थी बड़ी बहस, शिवजी ने इस तरह निकाला समाधान

गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य या पूजा को शुरू करने से पहले भगवान गणेशजी की पूजा जरुर की जाती है। भगवान गणेश को समृद्धि,बुद्धि और भाग्य का देवता माना जाता है। भगवान गणेश मनुष्‍यों के कष्‍ट दूर कर देते है और उनकी पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। आखिर सभी देवी-देवताओ में सबसे पहले भगवान गणेश जी की क्यों पूजा करते हैं आइए जानते है। पढ़ें- ऐसी मान्यता है कि किसी भी शुभ कार्य को शुरू करते समय भगवान गणेश करने से उस काम में किसी तरह की कोई अड़चन नहीं आती है। भगवान गणेश जी पूजा करते समय उस काम में आने वाली बाधा दूर हो जाती है।

गणेशोत्सव इस बार 10 नहीं 11 दिनों तक मनाया जाएगा,जानिए पूजा का शुभ मुहूर्त

हिन्दू धर्म में गणेश उत्सव का विशेष महत्व होता है। यह उत्सव भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस बार गणेशोत्सव 10 दिन के बजाय 11 दिनों तक चलेगा। इस साल गणेश चतुर्थी 25 अगस्त को मनाई जाएगी। पढ़े- हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य करने से पहले सभी देवी-देवताओं में सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। यह पर्व विशेष तौर पर महाराष्ट्र में 10 दिनों तक मनाया जाता है। इसमें लोग अपने घर में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करते है। वैसे तो गणेशोत्सव 10 दिनों तक चलता है लेकिन इस बार यह 11 दिनों तक चलेगा। इस बार इस दौरान 2 दशमी तिथि पड़ रही हैं क्योंकि 31 अगस्त और 1 सितंबर को दोनो दिन दशमी तिथि रहेगी। भगवान गणेश को इस दौरान कई तरह की मिठाईयां पूजा में चढ़ाई जाती है। गणेश जी को मोदक काफी पंसद होता है यह चावल के आटे,गु़ड़ और नारियल से बनाया जाता है। गणेश जी की पूजा दोपहर के समय की जाती है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश का जन्म दोपहर के समय हुआ था।

इन 7 कारणों से महाभारत के युद्ध में अर्जुन के हाथों मारा गया दानवीर कर्ण

महाभारत का महायुद्ध 18 द‌िनों तक चला इस युद्ध में सतरहवें द‌िन कौरवों के सेनापत‌ि कर्ण को वीरगत‌ि प्राप्त हुई जब अर्जुन ने न‌िहत्‍थे कर्ण पर द‌िव्यास्‍त्र का प्रयोग कर द‌िया। अर्जुन के द‌िव्यास्‍त्र से कर्ण की मृत्यु हो गई लेक‌िन यह पूरा सत्य नहीं है। दरअसल इसके पीछे 7 ऐसे कारण हैं जो नहीं होते तो कर्ण का अर्जुन के हाथों मरना असंभव होता। कर्ण दानवीर था लेक‌िन जीवन भर भाग्य ने उनके साथ कंजूसी द‌िखाई। जन्म के साथ ही मां का साथ छूट गया। मां ने बदनामी के डर से कर्ण को जन्म लेने के साथ ही बक्से में बंद करके गंगा में प्रवाह‌ित कर द‌िया। इससे कर्ण को अपनी वास्तव‌िकता का ज्ञान नहीं हो पाया और यह उसके ल‌िए मृत्यु का कारण बन गया। गुरु परशुराम जी ने कर्ण को शाप दे द‌िया क‌ि तुम मेरी दी हुई श‌िक्षा उस समय भूल जाओगे जब तुम्हें इसकी सबसे ज्यादा जरुरत होगी। शाप की वजह यह थी क‌ि कर्ण ने क्षत्र‌ियों के समान साहस का पर‌िचय द‌िया था ज‌िससे गुरु परशुराम क्रोध‌ित हो गए क्योंक‌ि उन्होंने क्षत्र‌ियों को ज्ञान न देने की प्रत‌िज्ञा ली हुई थी। और सत्‍य भी यही था क‌ि कर्ण एक क्षत्र‌िय थे और वास्तव‌िकता का बोध नहीं होने की वजह से खुद को सूत पुत्र बताया था। अर्जुन के हाथों कर्ण की मौत के पीछे दूसरा कारण एक ब्राह्मण का शाप था। एक बार कर्ण अपने रथ से जा रहे थे तेज रफ्तार रथ के नीचे एक गाय की बछ‌िया आ गई ज‌िससे उसकी मृत्यु हो गई। ब्राह्मण ने क्रोध में आकर कर्ण को शाप दे द‌िया क‌ि ज‌िस रथ पर चढ़कर अहंकार में तुमने गाय के बछ‌िया का वध क‌िया है उसी प्रकार न‌िर्णायक युद्ध में तुम्हारे रथ का पह‌िया धरती न‌िगल जाएगी और तुम मृत्यु को प्राप्त होगे। महाभारत के न‌िर्णयक युद्ध में कर्ण के रथ का पह‌िया धरती में धंस गया और इसे न‌िकालते समय अर्जुन ने द‌िव्यास्‍त्र का प्रयोग कर द‌िया। इस समय कर्ण परशुराम जी के शाप के कारण ब्रह्मास्‍त्र का प्रयोग नहीं कर पाए और मृत्यु को प्राप्त हो गए। अर्जुन के हाथों कर्ण के मारे जाने की तीसरी वजह कर्ण का महादानी होना था। कर्ण हर द‌िन सूर्य देव की पूजा करता था और उस समय जो भी कर्ण से दान मांगता था उसे कर्ण दान देते थे। महाभारत युद्ध में अर्जुन की रक्षा के ल‌िए देवराज इंद्र ने कर्ण से भगवान सूर्य से प्राप्त कवच और कुंडल दान में मांग ल‌िया। द‌िव्य कवच और कुंडल कर्ण दान नहीं करते तो उन पर क‌िसी द‌िव्यास्‍त्र का प्रभाव नहीं होता और वह जीव‌ित रहते। देवराज इंद्र के द‌िव्यास्‍त्र का घटोत्कच पर प्रयोग कर्ण की मृत्यु का कारण बना। कवच कुंडल दान के बदले कर्ण को देवराज से शक्त‌ि वाण म‌िला था ज‌िसका प्रयोग कर्ण ही बार कर सकता था। कर्ण ने इस वाण को अर्जुन के ल‌िए बचाकर रखा था लेक‌िन घटोत्कच के आतंक से परेशान हो कर कर्ण को शक्त‌ि वाण का प्रयोग घटोत्कच पर करना पड़ गया। अगर ऐसा नहीं होता तो महाभारत के युद्ध का प‌र‌िणाम कुछ और ही होता। कर्ण की मृत्यु के पीछे एक बड़ा कारण स्वयं भगवान श्री कृष्‍ण थे ज‌िन्होंने इंद्र को वरदान ‌द‌िया था क‌ि वह महाभारत के युद्ध में अर्जुन का साथ देंगे और सूर्य के पुत्र कर्ण पर व‌िजय प्राप्त करेंगे।कर्ण की मृत्यु अर्जुन के हाथों होने की एक अन्य बड़ी वजह यह थी क‌ि कर्ण दुर्योधन का साथ दे रहे थे जो अधर्म कर था। अधर्म का साथ देने की वजह से कर्ण का वीरगत‌ि प्राप्त हुई। भावुकता भी कर्ण की मृत्यु की वजह बनी। दरअसल महाभारत युद्ध में जब कर्ण सेनापत‌ि बने तब कुंती ने कर्ण के सामने उसकी सच्चाई जाह‌िर कर दी और बताया क‌ि पांडव तुम्हारे भाई हैं। इस बात से कर्ण के अंदर पांडवों के प्रत‌ि भावुकता उत्पन्न हो गई और यही भावुकता युद्ध के दौरान उनके ल‌िए घातक बन गई।

नवरोज आज: पारसी समाज मना रहा अपना नया साल

आज भारत में रहने वाले पारसी समुदाय के लिए नया साल मनाया जा रहा है। अगस्त महीने में पारसी समाज का नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। इस साल यह त्योहार 17 अगस्त 2017 को मनाया जा रहा है। पारसी समाज इस नववर्ष को नवरोज कहा जाता हैं। भारत में अगस्त महीने में क्यों मनाया जाता है नवरोज वैसे तो पूरे विश्व के दूसरे पारसी समुदाय 21 मार्च को नवरोज का पर्व मनाया जाता है।नवरोज़, फारस के राजा जमशेद की याद में मनाते हैं जिन्होंने पारसी कैलेंडर की स्थापना की थी। इस दिन पारसी परिवार के लोग नए कपड़े पहनकर अपने उपासना स्थल फायर टेंपल जाते हैं और प्रार्थना के बाद एक दूसरे को नए साल की मुबारकबाद देते हैं। साथ ही इस दिन घर की साफ-सफाई कर घर के बाहर रंगोली बनाई जाती है और कई तरह के पकवान भी बनते हैं। दरअसल सातवीं शाताब्दी में जब ईरान में धर्म परिवर्तन की मुहिम चली तो वहां के कई पारसियों ने अपना धर्म परिवर्तित कर लिया, लेकिन कई पारसी जिन्हें यह धर्म परिवर्तन करना मंजूर नहीं था वे लोग ईरान को छोड़कर भारत आ गए। और इसी धरती पर अपने संस्कारों को सहेज कर रखना शुरू कर दिया। भारत और पाकिस्तान में बसे पारसी समुदाय के लोग विश्व के दूसरे देशों में बसे हुए पारसी के 200 दिनों के बाद अगस्त महीने नया वर्ष मनाते हैं। भारत में ज्यादातर पारसी समुदाय गुजरात और महाराष्ट्र में बसे हुए है इस वजह से यह पर्व वहां जोर शोर से मनाया जाता है। नववर्ष पारसी समुदाय में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। पारसी धर्म में इसे खौरदाद साल के नाम से जाना जाता है। पारसियों में 1 साल 360 दिन का होता है और बाकी बचें 5 दिन गाथा के रूप में अपने पूर्वजों को याद करने के लिए रखा जाता है। साल के खत्म होने के ठीक 5 दिन पहले इसे मनाया जाता है। पढ़ें-