त्यौहार

पवित्रा एकादशी: आज इस तरह करें भगवान विष्‍णु की पूजा, पैसों की कमी होगी दूूर

आज की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। इस को पुराणों में पवित्रा एकादशी नाम दिया गया है। धर्म शास्त्रों में इसका नाम पुत्रदा एकादशी भी बताया गया है। इस के विषय में मान्यता है कि, जो भी व्यक्ति श्रद्घा और नियम पूर्वक इस व्रत का रखता है उसके पूर्व जन्म के पाप कट जाते हैं और संतान एवं धन-संपदा का सुख प्राप्त होता है। शास्त्रों में बताया गया है कि पवित्रा एकादशी का व्रत करने वाले को प्रातः काल स्नान ध्यान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूरे दिन व्रत रखकर संध्या के समय भगवान की पुनः पूजन करने के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं। रात्रि जागरण करके भगवान का भजन कीर्तन करें। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्रह्मणों को भोजन करवाएं और दान-दक्षिणा सहित विदा करें। इस प्रकार जो व्यक्ति पवित्रा एकादशी का व्रत करता है उसके वाजपेय यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। इससे पूर्व जन्म के पाप के कारण जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है। प्राचीन काल में एक नगर में राजा महिजीत राज करते थे। निःसंतान होने के कारण राजा बहुत दुःखी थे। मंत्रियों से राजा का दुःख देखा नहीं गया और वह लोमश ऋषि के पास गये। ऋषि से राजा के निःसंतान होने का कारण और उपाय पूछा। महाज्ञानी लोमश ऋषि ने बताया कि पूर्व जन्म में राजा को एकादशी के दिन भूखा प्यासा रहना पड़ा। पानी की तलाश में एक सरोवर पर पहुंचे तो एक गाय वहां पानी पीने आ गई। राजा ने गाय को भगा दिया और स्वयं पानी पीकर प्यास बुझाई। इससे अनजाने में एकादशी का व्रत हो गया और गाय के भगान के कारण राजा को निःसंतान रहना पड़ रहा है। लोमश ऋषि ने मंत्रियों से कहा कि अगर आप लोग चाहते हैं कि राजा को पुत्र की प्राप्ति हो तो श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत रखें और द्वादशी के दिन अपना व्रत राजा को दान कर दें। मंत्रियों ने ऋषि के बताए विधि के अनुसार व्रत किया और व्रत का दान कर दिया। इससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई। इस कारण पवित्रा एकादशी को पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है।

कुंडली में विवाह के दोष को दूर करता है मंगला गौरी व्रत

के हर मंगलवार को माता गौरी की पूजा की जाती है। के प्रत्येक मंगलवार को इस व्रत को करने के कारण इसे गौरी व्रत कहते है। पुराणों के अनुसार इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाएं के पति की लंबी आयु की कामना की जाती है। इसलिए सावन के महीने के हर मंगलवार को माता मंगला गौरी यानी पार्वतीजी की कथा सुनना फलदायी माना जाता है। जैसे सावन के महीने के सोमवार को शिवजी की विशेष पूजा करने का महत्व है उसी प्रकार सावन माह में मंगलवार को मां गौरी की उपासना करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है। अगर किसी कन्या की कुंडली में विवाह संबंधित दोष होने के कारण शादी में देरी हो रही है तो मंगला गौरी का व्रत करना अच्छा माना गया है। इस व्रत को करने वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्या दूर हो जाती है। इसलिए महिलाओं को सोलह सोमवार के साथ मंगला गौरी का व्रत जरूर करना चाहिए। मंगला गौरी के व्रत करने के पीछे एक कथा है एक गांव में बहुत धनी व्यापारी रहता था कई वर्ष बीत जाने के बाद भी उसका कोई पुत्र नहीं हुआ। तब उसने शिव और पार्वतीजी का पूजा करने लगा इसके बाद उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। परंतु उस बच्चे को श्राप था कि 16 वर्ष की आयु में सर्प काटने के कारण उसी मृत्यु हो जाएगी। संयोगवश व्यापारी के पुत्र का विवाह सोलह वर्ष से पूर्व मंगला गौरी का व्रत रखने वाली स्त्री की पुत्री से हुआ। इस प्रकार माता गौरी का व्रत करने के कारण व्यापारी के पुत्र से अकाल मृत्यु का साया हट गया और उसे दीर्घायु प्राप्त हुई।

सावन का चौथा सोमवार आज, शिवजी को चढ़ाने चाहिए बिल्वपत्र के अलावा ये 4 चीजें

सावन का पवित्र महीना चल रहा हैं और आज सावन का चौथा सोमवार हैं जिसका विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से भोलेनाथ की विशेष कृपा होती है। आइए जानते हैं कि इस दिन भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। सावन का महीना भगवान शिव को बहुत पसंद होता है। भोलेनाथ को बिल्व पत्र चढ़ाने से भगवान शिव का आर्शीवाद मिलता है। इसके आलावा भगवान शिव को शमी के पत्ते भी पसंद होते है इसलिए हर दिन शिवलिंग पर शमी के पत्ते जरूर चढ़ाएं। सावन के महीने में शिवलिंग पर जल चढ़ाने से पहले सूर्य देव को जल चढ़ाएं फिर शिवमंदिर जाकर तांबे के पात्र में गंगाजल में सफेद चंदन मिलाकर शिवलिंग को चढ़ाए। शिवजी को धतुरा भी काफी पसंद होता है इसलिए शिवजी की कृपा पाने के लिए इसे जरूर चढ़ाएं।

तुलसीदास जयंती: इतने दांतों के साथ जन्में थे 'रामबोला', 12 महीने तक रहे थे गर्भ में

आज देशभर में गोस्वामी तुलसीदास की जयंती मनाई जा रही है। सावन महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को उत्तर प्रदेश के बांदा में इनका जन्म हुआ था। तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस और हनुमान चालीसा सहित अपने जीवन काल में 12 ग्रन्थों की रचना की थी। तुलसीदास को महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी कहा जाता है। आइए जानते है गोस्वामी तुलसीदासजी से जुड़ी कुछ रोचक बातें। - तुलसीदास का जन्म मूल नक्षत्र में एक ब्राह्राण परिवार में हुआ था। ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास अपनी माता के गर्भ में 12 महीने तक रहने के कारण काफी हुष्ट-पुष्ट थे। जन्म के समय में इनके मुख में 32 दाँत थे और जन्म लेने के साथ इन्होनें राम शब्द का उच्चारण किया था जिससे इनका नाम रामबोला पड़ गया। - ऐसी मान्यता है कि तुलसीदास को हनुमान,भगवान राम-लक्ष्मण और शिव-पार्वतीजी के साक्षात दर्शन प्राप्त हुए थे। अपनी यात्रा के दौरान तुलसीदास काशी में उन्हें एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमानजी का पता बताया। हनुमानजी के दर्शन करने के बाद तुलसीदास ने भगवान राम के दर्शन कराने की प्रार्थना की। इसके बाद उन्हें भगवान राम के दर्शन हुए लेकिन वह भगवान को पहचान नहीं सके। - इसके बाद दोबारा मौनी अमावस्या के दिन दोबारा भगवान श्रीराम के दर्शन हुए उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहा-“बाबा!