धर्म

पैसों से भर जाएगी तिजोरी, आज इस समय रखें मौन व्रत

महालक्ष्मी का प्रिय दिन शुक्रवार होता है, इस दिन मां लक्ष्मी की आराधना करने से व्यक्ति को पैसों की कमी नहीं होती। 11 अगस्त को मां लक्ष्मी का दिन है, लेकिन इस बार ये दिन अधिक लाभदायक है, क्योंकि इस शुक्रवार को संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी व्रत और बहुला चतुर्थी व्रत का शुभ संयोग पड़ रहा है। मां लक्ष्मी भगवान गणेश को अपना पुत्र मानती थी, जो उनके प्रिय दिन पर ये संयोग बनना अधिक शुभ है। इस दिन किए गए विशेष उपाय से एक ओर धन से संबंधित कभी भी कोई समस्या नहीं होती, वहीं व्यक्ति की सारी इच्छाएं भी पूरी होती है। ये शुभ दिन आपको लाभ देकर जाए, इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि चांद देखने से पहले मौन रहें। यानी मौन व्रत रखें और चांद को देखने के बाद ही ये व्रत खोलें। चांद दिखने पर सबसे पहले अर्घ्य दें। शंख में दूध, सुपारी, गंध और चावल से भगवान गणेश और तिथ‌ि दोनों को अर्घ्य दें। जौ और सत्तू का भोग लगाएं और पूजा करने के बाद इसी भोग का भोजन करें। शास्‍त्रों के अनुसार इस दिन गाय के दूध पर सिर्फ बछड़े का अधिकार होता है। 

जीवन में सफल होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण से सीखें 5 बातें

सावन का पवित्र महीना खत्म होने के बाद भगवान का महीना भाद्रपद शुरू हो चुका है। भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 15 अगस्त यानि मंगलवार को मनाया जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन का अनुसरण करने के बाद एक सफल आदमी कैसे बना जा सकता हैं। उनके ऐसे कई गुण थे जिन्हें अपनाकर हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं। यह भी पढ़े-  शान्त स्वभाव का व्यवहार करना- हम सभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण बचपन से ही नटखट थे। श्री कृष्ण भले ही बाल रुप में थे और वे भगवान विष्णु के अवतार थे और वे यह बात जानते भी थे कि कंस मामा उन्हें बार-बार मारना चाहते थे, फिर भी वे शांत रहते थे और समय आने पर कंस के हर प्रहार का मुंह तोड़ जवाब देते थे।  साधारण जीवन जीना- भगवान श्रीकृष्ण एक बड़े घराने से संबंध रखते थे वह गोकुल में राजा नंद के पुत्र थे फिर भी वे गोकुल के अन्य बालको को तरह ही रहते और घूमते-खेलते रहते थे। उन्होंने कभी भी किसी में कोई अंतर नहीं रखते थे। उनमें राज घराने का कोई घमंड नही आया हमेशा उनके चहेरे पर सरल भाव रखते थे। कभी हार न माने- भगवान श्रीकृष्ण ने कभी भी हार न मनाने का संदेश दिया था हमें किसी भी परिस्थिति में हार को नहीं मानना चाहिए। अंत का प्रयास करते रहना चाहिए, भले ही परिणाम हमारे पक्ष में क्यों न हो। दोस्ती निभाना- कृष्ण और सुदामा की दोस्ती को कौन नहीं जानता?

यहां आठ माह जल में विराजते हैं महादेव, पूरी होती है हर मन्नत

हमारे देश में ऐसे शिवालय भी है, जिनके पीछे कई राज छिपे हैं। ऐसा ही एक मंदिर है जो गुजरात एवं राजस्थान की सरहद पर एक मंदिर ऐसा भी है जहां पर जल में विराजित हैं। या यूं कह सकते है कि यहा पर जल में समाधि लिए हुए हैं। यह मंदिर वर्ष में आठ माह पानी में डूबा रहता है। इस मंदिर के प्रति आस्था इतनी है कि इसकी एक झलक पाने एवं दर्शन के लिए भक्त नाव में बैठकर जाते हैं।  यह भी पढ़ें- गुजरात राज्य की सीमा पर लगते बांसवाड़ा-डूंगरपुर जिले के सरहद पर अनास व माही नंदी के संगम पर तलहटी पर चीखली-आनंदपुरी के मध्य बेडूआ गांव के पास संगमेश्वर महादेव है। इस मंदिर का निर्माण परमार वंश ने बांसवाड़ा जिले के गढ़ी राव हिम्मतसिंह द्वारा कराया गया था।  कहा जाता है कि तट पर बने कई अन्य मंदिर वर्ष भर पानी में रहने के कारण क्षतिग्रस्त हो गए, लेकिन इस मंदिर की सुदंरता समय के साथ निखरती जा रही है। यह स्थान प्राकृतिक दृष्टि से बहुत ही सुदंर स्थान जाना जाता है। यह मंदिर दो नदियों के संगम पर होने के कारण इसे संगमेश्वर शिवालय के नाम से जाना जाता है। वर्ष 1970 में गुजरात सरकार ने कड़ाणा बांध बनाया। इस बांध के बनने से यह स्थल डूब गया। यहां पर होली के पूर्व हर वर्ष मेला लगता था, लेकिन संगम स्थल के डूबने के कारण मेला भी बंद हो गया। इस मेले में शामिल होने के लिए राजस्थान के अलावा, मध्यप्रदेश एवं गुजरात से भक्त आते थे। यह स्थान डूब क्षेत्र में शामिल हो गया है। जब कडाणा बांध से पानी छोड़ा जाता है तो अथाह जलराशि का नजारा देखने को मिलता है। इस दौरान लोगों को नाव से सफर के लिए मना किया जाता है। यह भी पढ़ें- इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है। मंदिर के बाहर साधओुं की समाधियां बनी हुई है। यहां सुर्यमुखी मंदिर भी है। महादेव का यह मंदिर ईट व पत्थरों से बना है। इस पर कलात्मक कलाकृतियां उकेरी गई। इस मंदिर में मांगी जाने वाली मनोकामना अवश्य पूरी होती है। दो नदी संगम के गांवों से जुड़े लोग आज भी आवागमन के लिए नाव का सफर पूरा करते हैं। यहां दूर दूर तक सिर्फ पानी ही दिखाई देता है। नाव से आवाजाही करने वाले मंदिर को देखकर सहज ही उनका सिर श्रद्धा से झुक जाता है। कड़ाणा बांध के बेकवाटर का जलस्तर 400 फीट से कम होने पर मंदिर दर्शन के लिए खुल जाता है। -सिद्धार्थ शाह

जिस श्रद्धालु के पास नहीं दिखती ये 3 चीज, जैन मुनि नहीं करते वहां भोजन, जानें क्यों

भारत के हर कोने में कई तरह की पंरपरा है। खान-पान के अपने नियम है। हर धर्म में भोजन ग्रहण करने के अलग अलग नियम है। की आहारचर्या अचंभित करने वाली है। इनके कठोर नियमों के चलते कई दिनों तक भूखा भी रहना पड़ता है। २4 घंटे में सिर्फ एक बार भोजन और पानी पीते हैं, इसका भी अपना तय समय है। यदि उन्हें निश्चित धारणा नहीं मिलती है, तो वैसे ही वापस लौट जाते हैं। इनकी आहारचर्या इनकी साधना का अहम हिस्सा है। यह स्वाद के लिए भोजन नहीं करते हैं। यह धर्म साधना के लिए भोजन करते हैं। यह साधना आम इंसान के लिए काफी कठिन होती है।  यह भी पढ़ें-  जैन साधु जब आहार (भोजन) के लिए निकलते है तो विधि (नियम) लेकर निकलते हैं। पडग़ाहन में श्रद्धालुओं द्वारा शब्दों का उच्चारण किया जाता है। उस दौरान श्रद्धालु मतलब श्रावक के पास नारियल, कलश, लौंग होने का नियम लिया जाता है। नियम के अनुसार ये वस्तु नहीं दिखने पर बिना आहार लिए आ जाते हैं।  उसके बाद दूसरे दिन फिर वहीं नियम के साथ आहार (भोजन) के लिए वापस निकलते है। यदि नियम नहीं मिलता है, आहार के लिए उस घर में प्रवेश नहीं करते हैं। फिर अगले दिन का इंतजार किया जाता है।  साधु की आहारचर्या को सिंहवृत्ति कहते हैं। साधु एक ही स्थान पर खड़े होकर दोनों हाथों को मिलाकर अंजुली बनाते हैं, उसी में भोजन करते हैं। यदि अंजुली में भोजन के साथ चींटी, बाल, कोई अपवित्र पदार्थ या अन्य कोई जीव आ जाए तो उसी समय भोजन लेना बंद कर देते हैं। अपने हाथ छोड़ देते हैं। उसके बाद पानी भी नहीं पीते है। इस विधि से भोजन करने से साधु की भोजन के प्रति आसक्ति दूर होती है।  दिन में एक बार आहार करने के पीछे कई कारण है। शरीर से ममत्व भाव कम करना। धर्म साधना करते समय आलस्य ना आ जाए। इसलिए भोजन को शुद्धता के साथ बनाया जाना बहुत जरूरी होता है। मुनि पूज्य सागर कहते है कि जैन संत स्वाद के लिए भोजन नही करते है। ये धर्म साधना के लिए भोजन करते है। -सिद्धार्थ शाह

रावण की मृत्यु के बाद मंदोदरी ने क्यों किया विभीषण से विवाह

वाल्मीकि रामायण के अनुसार मंदोदरी लंका के राजा रावण की पत्नी थी। लेकिन क्या आप जानते है कि राम के हाथों रावण के मारे जानें के बाद मंदोदरी का क्या हुआ? उसे दोबारा विवाह रावण के भाई विभीषण को लंका का राजा बनने के बाद क्यों करनी पड़ी? आइए जानते है इसके पीछे की कहानी। पौराणिक कथा के अनुसार मंदोदरी महान ऋषि कश्यप के पुत्र मायासुर का पुत्री थी और मंदोदरी की माता का नाम रंभा था जो एक अप्सरा थी। मंदोदरी का विवाह रावण से हुआ था। एक बार रावण मयासुर से मिलने आया और वहां पर मंदोदरी को देखकर संमोहित होकर उससे विवाह करने की इच्छा जाहिर की इसके बाद मंदोदरी का विवाह रावण से हुआ था। रावण से विवाह के बाद मंदोदरी के तीन संताने हुई मेघनाद, अक्षयकुमार और अतिकाय भगवान राम और रावण के बीच हुए युद्ध में रावण की मौत के बाद भगवान राम ने लंका को रावण के भाई विभीषण को लंका राजा बना दिया। भगवान राम ने मंदोदरी को विभीषण से विवाह कर लेने की सलाह दी।  मंदोदरी इसके लिए तैयार नहीं हुई लेकिन भगवान राम के समझाने के बाद वह विभीषण से विवाह करने के लिए तैयार हो गई तो इस तरह मंदोदरी का दोबारा विवाह हुआ।

शरीर की ये निशानियां चमका सकती है आपकी किस्मत

में हमारे शरीर के कई हिस्सो की बनावट और निशानियों के बारें में बताया गया है। इस शास्त्र के अध्ययन से किसी व्यक्ति के स्वभाव और चरित्र के बारें में बताया जा सकता है। इंसान के शरीर में कई तरह की अलग-अलग निशानियां होती है आइए जानते है ऐसे ही कुछ निशानियों के बारें में। कई लोगो के दांतों के बीच काफी अंतर पाया जाता है। समुद्रशास्त्र के मुताबिक जिन लोगो के दांतो के बीच जगह होती है वह बहुत भाग्यशाली माने जाते है। ऐसे लोगो अपने लक्ष्यों के प्रति एकदम सही दिशा में चलते है साथ ही पैसों के मामले में भाग्यशाली होते है।वैसे तो आमतौर पर लोगों के हाथों में पांच उंगलियां होती है लेकिन जिन लोगों के हाथ में 5 की जगह 6 उंगलियां वे लोग समुद्रशास्त्र को अनुसार उन्हें कभी भी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होती है। ऐसे लोग अपने क्षेत्र में शोहरत हासिल करते हैं।  जिन पुरूषों की छाती पर बाल होते है वे लोग अपने बनाए हुए अलग रास्ते पर चलते है। पैसे और प्रसिद्धि के मामले में ऐसे लोगों को कभी भी निराशा नहीं होती है।

इस मंदिर में हनुमानजी अपने भक्तों से वसूलते हैं ब्याज 

देश में ऐसे कई मंदिर है जहां पर कई तरह के चमत्कार और रहस्य भरे पड़े हुए है। इसी तरह का एक मंदिर है छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में स्थित हनुमानजी का मंदिर जहां पर भगवान को प्रसाद को रूप में ब्याज चढ़ाया जाता है। ब्याज चढ़ाने का यह तरीका भी कुछ अनोखा है।  बिलासपुर के इस मंदिर में ब्याज देने की परंपरा पिछले 70 सालों से चली आ रही है। जहां पर भक्त अपनी मन्नत को कागज पर लिखकर देते है और मन्नत पूरी होने पर हनुमानजी को ब्याज देते है। यह पपंपरा पिछले कई सालों से चली आ रही है भक्त के मन्नत पूरी होने पर आपनी आमदनी की एक फीसदी रकम ब्याज के रूप में हनुमानजी को प्रसाद के रूप में चढ़ाते है।यह रकम केवल मंगलवार और शनिवार को ही चढ़ाई जाती है। हनुमान जी को ब्याज के रुप में रकम देने के पीछे एक कथा है। इसी शहर में एक व्यापारी रहता था उस समय उसको व्यापार में उसको बहुत नुकसान हुआ था। तब उस व्यापारी ने हनुमानजी से मन्नत मांगी कि अगर मेरा व्यापार चल निकला तो अपने लाभ का एक हिस्सा मंदिर में चढ़ाऊंगा। तभी से यह मान्यता चली आ रही है। भक्तों से ब्याज के रुप में प्राप्त की हुई रकम को गरीबों ,असहायों,बेसहारों और बेघर लोगों के बीच बांट दिया जाता है।