इस समय में देश में गणेश उत्सव की धूम है। के दिन भक्त अपने- अपने घरों में गणेशजी की मूर्ति की स्थापना करते है और भक्ति में डूबे रहते है। बड़े-बड़े पूजा पंडालों में गणपति की गूंज सुनाई देती है। इस समय हर भक्त के जुबान पर एक ही जयकारा गूंज रहा है 'गणपति बप्पा मोरया'। लेकिन क्या आप जानते है कि गणपति बप्पा मोरया क्यों बोला जाता है। आइए जानते है इसके पीछे का कारण।
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गणपति के जयकारे की कहानी महाराष्ट्र के एक गांव चिंचवाड़ गांव से जुडी है। इस गांव में एक संत पैदा हुए थे जिनका नाम मोरया गोसावी था। माना जाता है भगवान गणेश के आशीर्वाद के बाद ही मोरया का जन्म हुआ था। वह जन्म से ही भगवान गणेश जी भक्ति में लीन रहने लगे थे।
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जब भी गणेश चतुर्थी होता था तब मोरया गोसावी चिंचवाड़ से कई किलोमीटर पैदल चलकर मयूरेश्वर मंदिर में भगवान गणेश के दर्शन करने जाते थे। यह सिलसिला 117 साल तक चला। अधिक उम्र हो जाने की वजह से उन्हें मयूरेश्वर मंदिर तक जाने में काफी मुश्किलें पेश आने लगी थीं। तब एक दिन गणपति उनके सपने में आए।
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मोरया के सपने में भगवान गणेश जी ने उनसे कहा कि एक मूर्ति नदी में मिलेगी। इसके बाद जैसा उन्होंने सपने में देखा था वैसा ही हुआ नदी में स्नान करने के दौरान उन्हें गणेश प्रतिमा प्राप्त हुई। लोगों को जब इस घटना की जानकारी हुई तो लोग चिंचवाड़ गांव में मोरया गोसावी के दर्शन के लिए आने लगे।
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इसके बाद से उस संत के भक्त पैर छूकर उन्हें मोरया कहने लगे और संत मोरया भक्तों को मंगलमूर्ति के नाम से पुकारने लगें। इस प्रकार गणेश उत्सव के दौरान गणपति बप्पा मोरया के जयकारे लगने की परंपरा शुरू हो गई।