रात में मनाया जाता है, क्योंकि भाद्रपद मास के कृष्‍ण पक्ष की अष्टमी की आधी रात में उनका जन्म हुआ था। 12 बजते ही हर मंदिर, हर घर से पूजा अर्चना की आवाजें आना शुरू हो जाती है। अंधेरी रात में के जश्न में चगमका उठता है। देश में हर छोटे-बड़े मंदिर को सजाया जाता है। आधी रात को जब गोपाला आते हैं तो उनका दूध से अभिषेक किया जाता है, लेकिन 3 ऐसे मंदिर है जहां कृष्‍णा का अभिषेक रात में न होकर दिन में ही किया जाता है। ये दिनों ही मंदिर है वृंदावन में, जहां कृष्‍णा के बाल रूप की पूजा की जाती है।

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यहां ऐसा माना जाता है कि कृष्‍णा उनके बच्चे जैसे ही हैं। इसलिए यदि उन्हें रात्रि में नींद से जगाकर अभिषेक किया जाएगा तो माता यशोदा को ऐसा करना अच्छा नहीं लगेगा। इन मंदिरों में चैतन्य महाप्रभु के शिष्य गोपाल भट्ट द्वारा 1542 ईस्वी में ठाकुर राधारमण लाल मंदिर स्‍थापित किया गया है और तब से यहां दिन में ही अभिषेक किए जाने की परंपरा है।





पीटीआई के अनुसार चैतन्य महाप्रभु के अन्य भक्त लखनऊ के दो भाई शाह कुंदन लाल और शाह फुंदन लाल ने वृंदावन आकर ठा‌कुर राधारमण मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और इसके अलावा एक भव्य मंदिर भी बनवाया। ये मंदिर बसंत पंचमी के दिन ही खुलता है। इस मंदिर में भी दिन में ही ठाकुरजी का अभिषेक किया जाता है।





इन दो मंदिरों के अलावा चैतन्य महाप्रभु एक अन्‍य शिष्य जीव गोस्वामी ने ठाकुर  राधा दामोदर मंदिर के नाम से माधप गौड़ीस सम्प्रदाय के एक दूसरे मंदिर की स्‍थापना की। 

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ठाकुर राधारमण मंदिर में दूध, घी, बूरा, शहद, आदि पंचामृत और दो दर्जन से अधिक जड़ी बूटियों से जन्माष्टमी के दिन अभिषेक किया जाता है और करीब 2100 ली. दूध आदि सामग्री का उपयोग किया जाता है।