भादों महीने की कृष्ण तृतीया को कजरी तीज के रूप में मनाई जाती है। इसे कई नामों से जाना जाता है जैसे सतवा तीज, सातुडी तीज और सौंधा तीज। ये त्योहार सुहागिन और कुंवारी कन्याओं के लिए काफी महत्व रखता है। इस दिन पत्नी अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती है। साथ ही अच्छे वर के लिए कन्याएं यह व्रत जरुर रखती है।
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माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी इसके लिए उन्होनें 108 साल तक कठोर तपस्या की थी और भवगाव शिव को प्रसन्न किया था। शिवजी ने पार्वती से खुश होकर इसी तीज के दिन अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इस दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा करते हैं।
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इस दिन सुहागिन महिलाएं और कन्याएं एक साख कजरी गीत गाती है और गीत संगीत का कार्यक्रम करती है। यह व्रत विशेषकर उत्तर भारत के हिस्सो में मनाया जाता है।
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इस दिन गेंहू,जौ,चना और चावल से सत्तू में घी मिलाकर तरह तरह के पकवान बनाए जाते है और गाय की पूजा की जाती है।
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इस दिन नीम की पूजा की जाती है। कन्याएं व सुहागिनें व्रत रखकर संध्या को नीम की पूजा करती हैं। कन्याएं सुन्दर,सुशील वर तथा सुहागिनें पति की दीर्घायु की कामना करती हैं। वे तीज माता की कथा सुनती हैं। मन्दिरों में देवों के दर्शन करती हैं। इसके बाद व्रत तोड़ती है।