हमारे देश में ऐसे शिवालय भी है, जिनके पीछे कई राज छिपे हैं। ऐसा ही एक मंदिर है जो गुजरात एवं राजस्थान की सरहद पर एक मंदिर ऐसा भी है जहां पर जल में विराजित हैं। या यूं कह सकते है कि यहा पर जल में समाधि लिए हुए हैं। यह मंदिर वर्ष में आठ माह पानी में डूबा रहता है। इस मंदिर के प्रति आस्था इतनी है कि इसकी एक झलक पाने एवं दर्शन के लिए भक्त नाव में बैठकर जाते हैं।
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गुजरात राज्य की सीमा पर लगते बांसवाड़ा-डूंगरपुर जिले के सरहद पर अनास व माही नंदी के संगम पर तलहटी पर चीखली-आनंदपुरी के मध्य बेडूआ गांव के पास संगमेश्वर महादेव है। इस मंदिर का निर्माण परमार वंश ने बांसवाड़ा जिले के गढ़ी राव हिम्मतसिंह द्वारा कराया गया था।
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कहा जाता है कि तट पर बने कई अन्य मंदिर वर्ष भर पानी में रहने के कारण क्षतिग्रस्त हो गए, लेकिन इस मंदिर की सुदंरता समय के साथ निखरती जा रही है। यह स्थान प्राकृतिक दृष्टि से बहुत ही सुदंर स्थान जाना जाता है। यह मंदिर दो नदियों के संगम पर होने के कारण इसे संगमेश्वर शिवालय के नाम से जाना जाता है।
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वर्ष 1970 में गुजरात सरकार ने कड़ाणा बांध बनाया। इस बांध के बनने से यह स्थल डूब गया। यहां पर होली के पूर्व हर वर्ष मेला लगता था, लेकिन संगम स्थल के डूबने के कारण मेला भी बंद हो गया। इस मेले में शामिल होने के लिए राजस्थान के अलावा, मध्यप्रदेश एवं गुजरात से भक्त आते थे। यह स्थान डूब क्षेत्र में शामिल हो गया है। जब कडाणा बांध से पानी छोड़ा जाता है तो अथाह जलराशि का नजारा देखने को मिलता है। इस दौरान लोगों को नाव से सफर के लिए मना किया जाता है।
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इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है। मंदिर के बाहर साधओुं की समाधियां बनी हुई है। यहां सुर्यमुखी मंदिर भी है। महादेव का यह मंदिर ईट व पत्थरों से बना है। इस पर कलात्मक कलाकृतियां उकेरी गई। इस मंदिर में मांगी जाने वाली मनोकामना अवश्य पूरी होती है। दो नदी संगम के गांवों से जुड़े लोग आज भी आवागमन के लिए नाव का सफर पूरा करते हैं। यहां दूर दूर तक सिर्फ पानी ही दिखाई देता है। नाव से आवाजाही करने वाले मंदिर को देखकर सहज ही उनका सिर श्रद्धा से झुक जाता है। कड़ाणा बांध के बेकवाटर का जलस्तर 400 फीट से कम होने पर मंदिर दर्शन के लिए खुल जाता है।
-सिद्धार्थ शाह
-सिद्धार्थ शाह