जन्माष्टमी के दिन करें ये 5 उपाय, मिलेगा धन और यश का लाभ

कुछ दिनों के बाद पूरे देश में कृष्ण जन्माष्टमी धूम-धाम से मनाया जाएगा। भादों माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 15 अगस्त,मंगलवार को है। अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए जन्माष्टमी के दिन कुछ उपाय करने से शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने से माता लक्ष्मी भी प्रसन्न हो जाती हैं।  यह भी पढ़े- धन प्राप्त करने के लिए जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद राधा-कृष्ण मंदिर में जाकर भगवान कृष्ण को पीले माला अर्पित करना चाहिए। भगवान कृष्ण को विष्णु का अवतार माना गया है। जन्माष्टमी के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान कृष्ण का अभिषेक करें। इस उपाय को करने से भगवान कृष्ण के साथ माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती है और मन की मुराद पूरी होती है। भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा पाने के लिए सफेद मिठाई, साबुदाने या फिर खीर बनाकर भोग लगाएं और उसमें मिश्री और तुलसी के पत्ते डालें। इससे भगवान श्रीकृष्ण जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं। आपके किसी भी काम में कभी कोई बाधा न आए तो इसके लिए जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण मंदिर में जटा वाला नारियल और 11 बादाम चढ़ाएं। नौकरी में तरक्की के लिए जन्माष्टमी के दिन खीर बनाकर कन्याऔं को खिलाएं। ऐसा करने से भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

सावन हुआ खत्म, अब भगवान कृष्ण का महीना भादों हुआ शुरू

सावन का महीना भगवान शंकर होता है तो भादों का महीना माना जाता है। 8 अगस्त 2017 से 7 सितम्बर 2017 तक भादों का माह रहेगा। भादों महीना भगवान श्रीकृष्ण के जन्म लेने से संबंधित है। श्रीकृष्ण ने भादों के महीने के में भगवान विष्णु के 8वें अवतार के रूप में रोहिणी नक्षत्र के वृष लग्न में जन्म लिया था। भादों का माह भी, सावन की तरह ही पवित्र माना जाता है। इस माह में कुछ विशेष पर्व पड़ते हैं जिनका अपना-अपना अलग महत्त्व होता है। यह भी पढे़-  कजरी तीज- भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कजरी तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस त्यौहार को उत्तर भारत के कई क्षेत्रों में विशेष रूप से मनाया जाता है। 10 अगस्त के दिन गुरुवार को यह त्यौहार मनाया जायेगा। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी- भादों महीने की कृष्ण अष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के रूप में मनाया जाता है। इस बार यह त्योहार 14 और 15 अगस्त दोनों दिन मनाया जाएगा। पूरे भारत में जन्माष्टमी बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। आधी रात को कृष्ण का जन्म होता है।  गणेश चतुर्थी- जन्माष्टमी के बाद गणेश चतुर्थी का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री गणेश की पूजा,उपवास किया जाता है। गणेश चतुर्थी को चन्द्र दर्शन नहीं करने चाहिए। परिवर्तनी एकादशी- भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, एकादशी तिथि, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में देवझूलनी एकादशी मनाई जाती है। देवझूलनी एकादशी में विष्णु जी की पूजा, व्रत, उपासना करने का विधान है। देवझूलनी एकादशी को पदमा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।

जीवन में सफल होने के लिए भगवान श्रीकृष्ण से सीखें 5 बातें

सावन का पवित्र महीना खत्म होने के बाद भगवान का महीना भाद्रपद शुरू हो चुका है। भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 15 अगस्त यानि मंगलवार को मनाया जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन का अनुसरण करने के बाद एक सफल आदमी कैसे बना जा सकता हैं। उनके ऐसे कई गुण थे जिन्हें अपनाकर हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं। यह भी पढ़े-  शान्त स्वभाव का व्यवहार करना- हम सभी जानते हैं कि श्रीकृष्ण बचपन से ही नटखट थे। श्री कृष्ण भले ही बाल रुप में थे और वे भगवान विष्णु के अवतार थे और वे यह बात जानते भी थे कि कंस मामा उन्हें बार-बार मारना चाहते थे, फिर भी वे शांत रहते थे और समय आने पर कंस के हर प्रहार का मुंह तोड़ जवाब देते थे।  साधारण जीवन जीना- भगवान श्रीकृष्ण एक बड़े घराने से संबंध रखते थे वह गोकुल में राजा नंद के पुत्र थे फिर भी वे गोकुल के अन्य बालको को तरह ही रहते और घूमते-खेलते रहते थे। उन्होंने कभी भी किसी में कोई अंतर नहीं रखते थे। उनमें राज घराने का कोई घमंड नही आया हमेशा उनके चहेरे पर सरल भाव रखते थे। कभी हार न माने- भगवान श्रीकृष्ण ने कभी भी हार न मनाने का संदेश दिया था हमें किसी भी परिस्थिति में हार को नहीं मानना चाहिए। अंत का प्रयास करते रहना चाहिए, भले ही परिणाम हमारे पक्ष में क्यों न हो। दोस्ती निभाना- कृष्ण और सुदामा की दोस्ती को कौन नहीं जानता?

क्या आपके सपने में भी दिखता है कोई अनजान चेहरा ? जानें इसके पीछे का राज

की दुनिया अपनी एक अलग ही दुनिया है, जहां सब कुछ हकीकत जैसे लगता है। मन में दबी इच्छाएं हकीकत बन जाती है। हर एक का सपना कुछ ऐसा ही होता है। कई बार में कुछ ऐसे लोग भी मिलते है, जिन्हें हम हकीकत में नहीं जानते। कभी मिले भी नहीं, फिर वो कैसे हमारे सपने में दिखते हैं। आपके साथ भी ऐसा जरूर होता होगा। अगर हां तो इसके पीछे आपकी जिंदगी से जुड़ा एक गहरा राज है।  यह भी पढ़ें-  कई बार सपनों में अनजाने चेहरे दिखते हैं, जिनसे असल जिंदगी में ना कभी मिले और कही भीड़ में उन्हें देखा। फिर भी सपनों में आ जाते हैं। कभी दोस्त बनकर तो कभी दुश्मन बनकर।  अगर आपके सपनों में भी अनजाने चेहरे आ रहे हैं। मतलब जब आप सो रहे हैं और सपने में अनजाना चेहरा देख रहे हैं तो कोई शक्ति उस समय आप पर नजर रखे हुए हैं। जिसके प्रभाव से सपनों में आपकी मुलाकात किसी अनजान व्यक्ति से होती है।

आज शाम से लगेगा अग्नि पंचक, आगे के 5 दिनों तक ना करे ये काम

भारतीय के अनुसार पंचक को अशुभ माना जाता है। इस दौरान कुछ कामों को करने की मनाही होती है जिसे हमें भूल कर भी नहीं करनी चाहिए। इसमें धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, पूर्वा भाद्रपद और रेवती नक्षत्र होते हैं। इस बार मंगलवार की शाम 4.32 से पंचक शुरू होगा जो 13 अगस्त की रविवार की सुबह 5.12 तक रहेगा। - ज्योतिष में कुछ नक्षत्रों में शुभ कार्य करना सही माना जाता है वहीं कुछ नक्षत्र ऐसे भी होते हैं जिन्हें बेहद अशुभ माना जाता है।धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद एवं रेवती कुछ ऐसे ही अशुभ नक्षत्रों के नाम है, जिन्हें काफी अशुभ माना जाता है। पंचक में 5 काम नहीं करना चाहिए

विष योग के प्रभाव को कम करने के लिए करें ये 5 उपाय, दूर होंगे सारे कष्ट

तब बनता है जब चंद्रमा के साथ गोचर करने लगता है। ऐसी स्थिति काफी कष्टदायी माना जाता है इस योग के चलते जीवन में कई तरह की शारीरिक और मानसिक कठिनाई आने लगती है। विष योग के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए कुछ उपाय को जानना जरुरी होता है। ये भी पढ़े-  हिन्दू धर्म में पीपल के पे़ड़ में देवी-देवताओं का निवास स्थान माना जाता है। विष योग से बचने के लिए पीपल के पे़ड़ के नीचे नारियल फोड़ना चाहिए इसके विष योग के नकारात्मक प्रभाव से बचा जा सकता है। विष योग के प्रभाव से बचने के लिए शनिवार के दिन सरसों के तेल में काली उड़द और काला तिल डालकर दिये जलाना चाहिए।  पानी से भरे घड़े को शनि या हनुमान मंदिर में दान करना भी विष योग से परेशान व्यक्ति को राहत देने वाला माना जाता है। भगवान बजरंग बली जिन्हें संकट मोचन भी कहा जाता है इनकी पूजा से भी विष योग से बचा जा सकता है।

जानिए क्यों पत्नी ने बांधी थी पति को राखी, फिर शुरू हुआ रक्षाबंधन का त्योहार

का त्योहार आमतौर पर भाई-बहनों का त्योहार माना जाता है। इस दिन बहनें भाई की कलाईयों में राखी बांधकर उन्हें लंबी उम्र की दुआ देती हैं, लेकिन रक्षाबंधन का एक बड़ा रहस्य यह है कि इस त्योहार की शुरुआत भाई-बहन ने नहीं, बल्कि एक पति पत्नी से शुरू किया गया था। इसके बाद से संसार में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा। इस संदर्भ में जो कथा है उसका उल्लेख भविष्य पुराण में मिलता है। ये भी पढ़ें-  भविष्य पुराण के अनुसार एक बार दानवों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवताओं की सेना दानवों से पराजित होने लगी। देवराज इंद्र की पत्नी देवताओं की लगातार हो रही हार से घबरा गयी और इंद्र के प्राणों रक्षा के उपाय सोचने लगी। काफी सोच-विचार करने के बाद इन्द्र की पत्नी शचि ने तप करना शुरू किया। इससे एक रक्षासूत्र प्राप्त हुआ। शचि ने इस रक्षासूत्र को इंद्र की कलाई पर बांध दिया। इससे देवताओं की शक्ति बढ़ गयी और दानवों पर विजय पाने में सफल हुए। श्रावण पूर्णिमा के दिन शचि ने इंद्र को रक्षासूत्र बांधा था। इसलिए इस दिन से रक्षा बंधन का त्योहार बनाया जाने लगा। भविष्य पुराण के अनुसार यह जरूरी नहीं कि भाई-बहन अथवा पति-पति रक्षा बंधन का त्योहार मना सकते हैं। दरअसल आप जिसकी भी रक्षा एवं उन्नति की इच्छा रखते हैं उसे रक्षा सूत्र यानी राखी बांध सकते हैं। इसलिए पुरोहित लोग आशीर्वादवाचन के साथ अपने यजमान की कलाई में राखी बांधा करते हैं।

कुछ ही देर में खत्म हो जाएगा राखी बांधने का शुभ मुहूर्त, जल्द बहनें बांधे राखी

आज पूरे देश में रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा रहा है। भद्रा काल के चलते राखी बांधने का शुभ मुहूर्त सुबह 11:05 से लेकर दोपहर 1:28 तक यानि ढाई घंटे तक ही राखी बांधी जाएगी। भद्रा और सूतक के दौरान रक्षाबंधन नहीं मनाया जा सकता है। इस बार रक्षाबंधन के दिन चन्द्रग्रहण के साथ भद्रा का भी साया रहेगा, जिसके चलते राखी बांधने के लिए के केवल 2 घंटे और कुछ मिनटों तक का ही समय मिलेगा। ज्योतिषियों के अनुसार यह योग है जिसके चलते ग्रहण और भद्रा के समय को ध्यान में रखते हुए राखी के लिए बहुत कम समय मिल रहा है। ज्योतिषित गणना के अनुसार रक्षाबंधन पर सोमवार को ग्रहण रात्रि 10.

इन 7 कारणों से भी मनाया जाता है रक्षाबंधन का त्योहार

रक्षाबंधन के त्योहार को आमतौर पर भाई बहनों का त्योहार माना जाता है लेक‌िन इस त्योहार को मनाने का महज यही कारण नहीं है, इसके पीछे और भी कई वजहें हैं। पहली वजह पुराणों की कथा में म‌िलती है इसके अनुसार रक्षासूत्र यानी राखी का न‌िर्माण करने वाली देवी शच‌ि हैं। यह देवराज इंद्र की पत्नी हैं। भव‌िष्य पुराण की कथा के अनुसार देवलोक पर असुरों ने अाक्रमण कर ‌द‌िया। युद्ध में असुरों का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। ऐसे समय में देवराज इंद्र की रक्षा के ल‌िए देवी शच‌ि ने कच्चे धागे को अभ‌िमंत्र‌ित करके श्रावण पूर्ण‌िमा के द‌िन देवराज इंद्र की कलाई में बांध द‌िया। इसके बाद इंद्र ने असुरों को पराज‌ित कर द‌िया। तभी से यह त्योहार मनाने की परंपरा चली आ रही है। दूसरी कथा वामन पुराण में म‌िलती है। इस पुराण में राखी के बारे में जो कथा म‌िलती है उसके बाद से राखी भाई बहनों का त्योहार बन गया। इस पुराण में बताया गया है क‌ि भगवान व‌िष्‍णु के वामन अवतार को राजा बल‌ि अपने साथ पाताल लेकर चले गए। वामन बने भगवान व‌िष्‍णु अपने द‌िए वरदान के कारण पाताल को छोड़कर बैकुंठ नहीं जा सकते थे। ऐसे में देवी लक्ष्मी ने श्रावण महीने की पूर्ण‌िमा त‌िथ‌ि को एक बूढ़ी मह‌िला का भेष बनाया और पहुंच गयी पाताल लोक में राजा बल‌ि के पास। राजा बल‌ि ने गरीब और कमजोर बूढ़ी स्‍त्री को देखा तो उसे बहन बना ल‌िया। देवी लक्ष्मी ने राजा बल‌ि की कलाई में रेशम के धागे बांधे तो राजा बल‌ि ने उपहार मांगने के ल‌िए कहा। देवी लक्ष्मी ने झट से वामन को वरदान के बंधन से मुक्त करके बैकुंठ लौट जाने का आशीर्वाद मांग ल‌िया। इस तरह देवी लक्ष्मी ने राखी को भाई बहन का त्योहार बना द‌िया।राखी को लेकर महाभारत में एक कथा का उल्लेख है ज‌िसमें एक साख्य भाव से रक्षा बंधन मनाने का ज‌िक्र आया है। श‌िशुपाल के वध के समय अपने ही सुदर्शन चक्र से श्री कृष्‍ण की उंगली कट गई। द्रौपदी ने जब देखा क‌ि वासुदेव श्री कृष्‍ण की उंगली में खून टपक रहा है तो उन्होंने झट से अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और श्री कृष्‍ण की उंगली में बांध द‌िया ज‌िससे खूब का टपकना बंद हो गया। यह घटना भी सावन महीने की पूर्ण‌िमा त‌िथ‌ि को हुआ माना जाता है। राखी का त्योहार मनाने का एक अन्य कारण भी महाभारत में द‌िया गया है। यह कथा है महाभारत युद्ध के समय का। कथा है क‌ि भगवान श्री कृष्‍ण ने युध‌िष्ठ‌िर से कहा क‌ि तुम्हारी रक्षा करने वाले तुम्हारे सैन‌िक हैं। इसल‌िए इनके साथ रक्षाबंधन का त्‍योहार मनाओ। श्री कृष्‍ण की सलाह पर युध‌‌िष्ठ‌िर ने अपने सैन‌िकों के संग राखी का त्योहार मनाया। यही कारण है क‌ि आज भी लोग सैन‌िकों के साथ रक्षाबंधन का त्योहार मनाते हैं।राखी से जुड़ी सबसे आधुन‌िक कथा मुगल शासक हुमायूं और च‌ितौड़ की रानी कर्णावती की है। गुजरात के शासक बहादुर शाह से अपने राज्य और जनता की रक्षा के ल‌िए रानी ने हुमायूं को राखी भेजा। हुमायूं ने भी राखी की लाज रखते हुए रानी कर्णावती की सहायता की। आधुन‌िक युग में राखी के महत्व को स्‍थाप‌ित करने में इस कथा ने भी बड़ी भूम‌िका न‌िभाई। वैसे रक्षाबंध्‍ान के अलावा भी इसद‌िन का बड़ा महत्‍व है।रक्षाबंधन का त्योहार इसल‌िए भी मनाया जाता है क्योंक‌ि इसी ‌द‌िन भगवान व‌िष्‍णु के हयग्रीव अवतार का जन्म श्रवण नक्षत्र में हुआ था। वैष्‍णव धर्म में हयग्रीव भगवान के जन्म का उत्सव श्रावणी उत्सव के रूप में मनाया जाता है।चार वेदों में सामवेद की उत्पत्त‌ि भी श्रावण पूर्ण‌िमा के द‌िन हुआ माना जाता है। माना जाता है क‌ि इसी द‌िन व‌ितस्ता और स‌िंधु नदी के संगम भी भगवान व‌िष्‍णु ने पहली बार सामवेद का गायन क‌िया था।