भद्राकाल में क्यों नहीं बांधते है राखी, भगवान शिव और रावण से जुड़ा है रहस्य

सावन महीने की पूर्णिमा को का त्यौहार मनाया जाता है इस बार यह पर्व 7 अगस्त को मनाया जाएगा। इस बार के रक्षाबंधन में के साथ भद्रा का भी साया होगा। शास्त्रों के अनुसार भद्राकाल के समय राखी नहीं बांधनी चाहिए क्यों इसे अशुभ माना जाता है आखिर क्यों के समय राखी नहीं बांधी जाती आइए जानते है इसके पीछे का कारण। यह भी पढ़ें- दरअसल भद्रा और सूतक होने के दौरान को भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि रावण की बहन सूर्पनखा ने अपने भाई रावण को भद्रा काल के लगने के दौरान ही राखी बांधी थी, जिसके कारण रावण का सर्वनाश हुआ था। यही वजह है कि लोग भद्रा के समय राखी नहीं बांधते हैं। इसी तरह एक दूसरी मान्यता है कि भद्रा काल के दौरान भगवान शिव तांडव करते हैं जिसकी वजह से वे काफी गुस्से में होते हैं। इस दौरान महादेव के क्रोध होने के कारण कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा की नजर रहेगी जिस कारण से 11 बजकर 4 मिनट के बाद ही कलाई पर राखी बांधने की रस्म शुरू होगी। भद्रा को शुभ कार्य के लिए अशुभ माना जाता है, इसलिए भद्रा के समाप्त होने के बाद राखी बांधना शुभ फलदायी रहेगा।

शाम के समय कभी न करें ये 5 काम, वरना नहीं दूर होगी घर से दरिद्रता

हिन्दू धर्म में करने का विशेष महत्व होता है। सुबह और शाम को भगवान की आराधना करते समय क्या करना चाहिेए और क्या नहीं इसके बारें में हमारे शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है। अगर हम इन बातों का ध्यान नहीं देते तो भगवान की कृपा नहीं मिलती है साथ ही कई तरह की परेशानियों से घिर जाते हैं।  वैसे तो शाम के वक्त किसी भी पौधे की पत्तियों को नहीं तोड़ना चाहिए। विशेषरूप से तुलसी के पौधे की पत्तियों को शाम के समय नहीं तोड़ना चाहिए इसे अशुभ माना जाता है। सूर्यास्त के बाद कभी खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि शाम के वक्त सभी देवता विश्राम करने के लिए चले जाते हैं। ऐसा करने से भगवान का अनादर माना जाता है। इस समय भोजन करने घर में दरिद्रता आती है। शाम के समय सोने से बचना चाहिए सेहत की नजरिए से इससे पेट संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है साथ ही धार्मिक कारणों से भी ऐसा करना अशुभ माना जाता है। सूर्यास्त के बाद कभी भी घर की साफ-सफाई न करें क्योंकि झाडू में माता लक्ष्मी का निवास माना जाता है। ऐसा करने से माता लक्ष्मी नाराज हो सकती है और कृपा बरसनी बंद हो जाती है। सूर्यास्त के बाद कभी पूजा के दौरान घंटी नहीं बजानी चाहिए क्योंकि ऐसी मान्यता है कि शाम को सभी देवी-देवता नींद लेने चले जाते हैं।

यहां आठ माह जल में विराजते हैं महादेव, पूरी होती है हर मन्नत

हमारे देश में ऐसे शिवालय भी है, जिनके पीछे कई राज छिपे हैं। ऐसा ही एक मंदिर है जो गुजरात एवं राजस्थान की सरहद पर एक मंदिर ऐसा भी है जहां पर जल में विराजित हैं। या यूं कह सकते है कि यहा पर जल में समाधि लिए हुए हैं। यह मंदिर वर्ष में आठ माह पानी में डूबा रहता है। इस मंदिर के प्रति आस्था इतनी है कि इसकी एक झलक पाने एवं दर्शन के लिए भक्त नाव में बैठकर जाते हैं।  यह भी पढ़ें- गुजरात राज्य की सीमा पर लगते बांसवाड़ा-डूंगरपुर जिले के सरहद पर अनास व माही नंदी के संगम पर तलहटी पर चीखली-आनंदपुरी के मध्य बेडूआ गांव के पास संगमेश्वर महादेव है। इस मंदिर का निर्माण परमार वंश ने बांसवाड़ा जिले के गढ़ी राव हिम्मतसिंह द्वारा कराया गया था।  कहा जाता है कि तट पर बने कई अन्य मंदिर वर्ष भर पानी में रहने के कारण क्षतिग्रस्त हो गए, लेकिन इस मंदिर की सुदंरता समय के साथ निखरती जा रही है। यह स्थान प्राकृतिक दृष्टि से बहुत ही सुदंर स्थान जाना जाता है। यह मंदिर दो नदियों के संगम पर होने के कारण इसे संगमेश्वर शिवालय के नाम से जाना जाता है। वर्ष 1970 में गुजरात सरकार ने कड़ाणा बांध बनाया। इस बांध के बनने से यह स्थल डूब गया। यहां पर होली के पूर्व हर वर्ष मेला लगता था, लेकिन संगम स्थल के डूबने के कारण मेला भी बंद हो गया। इस मेले में शामिल होने के लिए राजस्थान के अलावा, मध्यप्रदेश एवं गुजरात से भक्त आते थे। यह स्थान डूब क्षेत्र में शामिल हो गया है। जब कडाणा बांध से पानी छोड़ा जाता है तो अथाह जलराशि का नजारा देखने को मिलता है। इस दौरान लोगों को नाव से सफर के लिए मना किया जाता है। यह भी पढ़ें- इस मंदिर में स्वयंभू शिवलिंग है। मंदिर के बाहर साधओुं की समाधियां बनी हुई है। यहां सुर्यमुखी मंदिर भी है। महादेव का यह मंदिर ईट व पत्थरों से बना है। इस पर कलात्मक कलाकृतियां उकेरी गई। इस मंदिर में मांगी जाने वाली मनोकामना अवश्य पूरी होती है। दो नदी संगम के गांवों से जुड़े लोग आज भी आवागमन के लिए नाव का सफर पूरा करते हैं। यहां दूर दूर तक सिर्फ पानी ही दिखाई देता है। नाव से आवाजाही करने वाले मंदिर को देखकर सहज ही उनका सिर श्रद्धा से झुक जाता है। कड़ाणा बांध के बेकवाटर का जलस्तर 400 फीट से कम होने पर मंदिर दर्शन के लिए खुल जाता है। -सिद्धार्थ शाह

आज इस विशेष योग में करें ये आसान उपाय, दूर होगा शनि का प्रभाव

धर्मग्रंथों के अनुसार को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वीद प्राप्त करने के लिए प्रदोष का व्रत किया जाता है। प्रदोष व्रत चन्द्र मास की दोनों त्रयोदशी के दिन किया जाता है। 5 अगस्त को शनिवार है और इसी दिन प्रदोष व्रत है। सावन के महीने में शनि प्रदोष को काफी शुभ माना जाता है इस दिन कुछ विशेष पूजा-पाठ करने से महादेव के साथकी भी कृपा मिलती है। शनि प्रदोष के दिन शिवालयों पर जाकर शिवलिंग पर बिल्वपत्रों पर लाल चंदन से ऊं नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाए। ऐसा करने आप पर भगवान शिव की कृपा मिलेगी। शनि प्रदोष के दिन जीवन में सुख-समृद्धि पाने के लिए किसी गाय को रोटी और हरा चारा खिलाएं। ऐसा करने से जीवन में परेशानियां कम होने लगती है। शनि प्रदोष पर शनि मंदिर में जाकर शनिदेव को तिल से मिला हुआ तेल चढ़ाए साथ ही एक काले कपड़ें में काले उड़द को बांध कर किसी नदी या कुएं में प्रवाहित करें। अगर आपके ऊपर शनि की साढ़े साती का प्रभाव चल रहा है तो इस दिन सुबह और शाम को पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक जलाएं। ऐसा करने शनि का प्रभाव आपकी कुंडली से कम होने लगता है।

चन्द्रग्रहण और भद्रा का न हो आप पर असर इसलिए इस खास समय पर बांधे राखी

भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक का यह त्यौहार इस बार 7 अगस्त 2017 को मनाया जाएगा। इस बार का रक्षाबंधन कई मायनों में खास रहेगा। 12 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है कि रक्षाबंधन के दिन पड़ रहा है। साथ ही इस दिन भद्राकाल भी रहेगा और सावन का आखिर सोमवार भी रहेगा। इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा की नजर रहेगी जिस कारण से 11 बजकर 4 मिनट के बाद ही कलाई पर राखी बांधने की रस्म शुरू होगी। भद्रा को शुभ कार्य के लिए अशुभ माना जाता है, इसलिए भद्रा के समाप्त होने के बाद राखी बांधना शुभ फलदायी रहेगा। इस बार का रक्षाबंधन खास होने की एक और वजह है दरअसल इस दिन सावन का पवित्र अंतिम सोमवार है। सावन का अंतिम सोमवार को होने के कारण काफी शुभ माना गया है।

जिस श्रद्धालु के पास नहीं दिखती ये 3 चीज, जैन मुनि नहीं करते वहां भोजन, जानें क्यों

भारत के हर कोने में कई तरह की पंरपरा है। खान-पान के अपने नियम है। हर धर्म में भोजन ग्रहण करने के अलग अलग नियम है। की आहारचर्या अचंभित करने वाली है। इनके कठोर नियमों के चलते कई दिनों तक भूखा भी रहना पड़ता है। २4 घंटे में सिर्फ एक बार भोजन और पानी पीते हैं, इसका भी अपना तय समय है। यदि उन्हें निश्चित धारणा नहीं मिलती है, तो वैसे ही वापस लौट जाते हैं। इनकी आहारचर्या इनकी साधना का अहम हिस्सा है। यह स्वाद के लिए भोजन नहीं करते हैं। यह धर्म साधना के लिए भोजन करते हैं। यह साधना आम इंसान के लिए काफी कठिन होती है।  यह भी पढ़ें-  जैन साधु जब आहार (भोजन) के लिए निकलते है तो विधि (नियम) लेकर निकलते हैं। पडग़ाहन में श्रद्धालुओं द्वारा शब्दों का उच्चारण किया जाता है। उस दौरान श्रद्धालु मतलब श्रावक के पास नारियल, कलश, लौंग होने का नियम लिया जाता है। नियम के अनुसार ये वस्तु नहीं दिखने पर बिना आहार लिए आ जाते हैं।  उसके बाद दूसरे दिन फिर वहीं नियम के साथ आहार (भोजन) के लिए वापस निकलते है। यदि नियम नहीं मिलता है, आहार के लिए उस घर में प्रवेश नहीं करते हैं। फिर अगले दिन का इंतजार किया जाता है।  साधु की आहारचर्या को सिंहवृत्ति कहते हैं। साधु एक ही स्थान पर खड़े होकर दोनों हाथों को मिलाकर अंजुली बनाते हैं, उसी में भोजन करते हैं। यदि अंजुली में भोजन के साथ चींटी, बाल, कोई अपवित्र पदार्थ या अन्य कोई जीव आ जाए तो उसी समय भोजन लेना बंद कर देते हैं। अपने हाथ छोड़ देते हैं। उसके बाद पानी भी नहीं पीते है। इस विधि से भोजन करने से साधु की भोजन के प्रति आसक्ति दूर होती है।  दिन में एक बार आहार करने के पीछे कई कारण है। शरीर से ममत्व भाव कम करना। धर्म साधना करते समय आलस्य ना आ जाए। इसलिए भोजन को शुद्धता के साथ बनाया जाना बहुत जरूरी होता है। मुनि पूज्य सागर कहते है कि जैन संत स्वाद के लिए भोजन नही करते है। ये धर्म साधना के लिए भोजन करते है। -सिद्धार्थ शाह

कुंडली में इस जगह हो शुभ ग्रह, करवाता है दिन- रात फायदा

मेहनत के बावजूद भी कई बार व्यक्ति की आर्थिक ‌स्थिति अच्छी नहीं होती। इसके पीछे एक कारण आपकी और ग्रह है। जानिए किस तरह के लिए जिंदगीभर पैसा कमाते रहते हैं। ज्योतिषशास्‍त्र के अनुसार में दूसरा भाव धन से संबंधित होता है। इसी भाव से व्यक्ति को धन, जवाहारात आदि मिलते हैं। यह भी पढ़ेंः  अगर किसी व्यक्ति के दूसरे भाव में शुभ ग्रह या किसी शुभ ग्रह की दृष्टि है तो उस व्‍यक्ति को अमीर बनने से कोई भी नहीं रोक सकता। देर भले ही हो सकती है, लेकिन वो अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर लेता है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में बुध ग्रह पर चंद्रमा की दृ‌‌ष्टि हो तो वह व्यक्ति धनहीन होता है। जीवनभर मेहनत करता है, लेकिन पैसों को लेकर हमेशा ही शिकायत रहती है। कुंडली में दूसरे भाव में चंद्रमा होने पर धन प्राप्ति का योग बना रहता है, वहीं अगर उस पर बुध की नजर पड़ जाए तो घर में रखा धन भी नष्ट हो जाता हे। जब कुंडली में सूर्य और बुध दूसरे भाव में होते हैं, तो व्यक्ति के पास धन स्थिर नहीं रहता।

पवित्रा एकादशी: आज इस तरह करें भगवान विष्‍णु की पूजा, पैसों की कमी होगी दूूर

आज की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। इस को पुराणों में पवित्रा एकादशी नाम दिया गया है। धर्म शास्त्रों में इसका नाम पुत्रदा एकादशी भी बताया गया है। इस के विषय में मान्यता है कि, जो भी व्यक्ति श्रद्घा और नियम पूर्वक इस व्रत का रखता है उसके पूर्व जन्म के पाप कट जाते हैं और संतान एवं धन-संपदा का सुख प्राप्त होता है। शास्त्रों में बताया गया है कि पवित्रा एकादशी का व्रत करने वाले को प्रातः काल स्नान ध्यान करके भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूरे दिन व्रत रखकर संध्या के समय भगवान की पुनः पूजन करने के बाद फल ग्रहण कर सकते हैं। रात्रि जागरण करके भगवान का भजन कीर्तन करें। अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्रह्मणों को भोजन करवाएं और दान-दक्षिणा सहित विदा करें। इस प्रकार जो व्यक्ति पवित्रा एकादशी का व्रत करता है उसके वाजपेय यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। इससे पूर्व जन्म के पाप के कारण जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है। प्राचीन काल में एक नगर में राजा महिजीत राज करते थे। निःसंतान होने के कारण राजा बहुत दुःखी थे। मंत्रियों से राजा का दुःख देखा नहीं गया और वह लोमश ऋषि के पास गये। ऋषि से राजा के निःसंतान होने का कारण और उपाय पूछा। महाज्ञानी लोमश ऋषि ने बताया कि पूर्व जन्म में राजा को एकादशी के दिन भूखा प्यासा रहना पड़ा। पानी की तलाश में एक सरोवर पर पहुंचे तो एक गाय वहां पानी पीने आ गई। राजा ने गाय को भगा दिया और स्वयं पानी पीकर प्यास बुझाई। इससे अनजाने में एकादशी का व्रत हो गया और गाय के भगान के कारण राजा को निःसंतान रहना पड़ रहा है। लोमश ऋषि ने मंत्रियों से कहा कि अगर आप लोग चाहते हैं कि राजा को पुत्र की प्राप्ति हो तो श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत रखें और द्वादशी के दिन अपना व्रत राजा को दान कर दें। मंत्रियों ने ऋषि के बताए विधि के अनुसार व्रत किया और व्रत का दान कर दिया। इससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई। इस कारण पवित्रा एकादशी को पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है।

सुबह उठते ही सबसे पहले करना चाहिए ये 1 काम, दूर होती है सारी परेशानियां

संतुलित जीवन जीने के लिए हमारे में सुबह-सुबह कुछ नियम बताएं गए है जिसका पालन करने से हमारा पूरा दिन अच्छा बीतता है। हमारे दिनचर्या की शुरूआत सुबह जागने के साथ शुरू हो जाती है सुबह अगर दिन की शुरूआत अच्छी होती है तो पूरा दिन बढ़िया से बीतता है।  सुबह सवेरे उठकर सबसे पहले दोनों हाथ जोड़कर प्रभु को प्रणाम करें और फिर हाथ खोलकर अपनी हथेलियों को ध्यान से देखें। ऐसा करने से दिनभर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता रहता है। दरअसल हमारे शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि हाथों में सृष्टि के रचानाकार ब्रह्मा, धन की देवी लक्ष्मी और सुख एवं समृद्धि की देवी सरस्वती, तीनों का वास होता है। इसलिए सुबह-सुबह इन्हें देखना शुभ माना जाता है। इसके बाद दूसरा काम बिस्तर से उतारने से पहले भूमि वंदना करना चाहिेए।हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धरती को माता के रूप में देखा जाता है। दोनों हाथो से धरती का आशीर्वाद लेने चाहिए। दरअसल भूमि से हमें भोजन,पानी और आश्रय मिलता है।  तीसरा काम अपने माता-पिता और बड़े लोगों का पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेने से दिन के सारे काम बढ़िया से बीतता है साथ ही चरण स्पर्श से हमें सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

सिर्फ 4 कीलों का ये उपाय, देखते ही देखते खत्म कर देगा आपके सारे दुश्मन

हर कोई एक दूसरे में आगे निकलना चाहता है। कई बार दूसरों की खुशी के कारण भी व्यक्ति के अंदर जलन की भावना पनप जाती है। नतीजा दुश्मनी और इसके चलते लोग किसी की भी खुशी को बर्बाद करने में कोई कमी नहीं छोड़ते। अगर आपका भी कोई शत्रु बन गया और किसी न किसी तरह से आपको परेशान कर रहा है, तो चार कील का ये उपाय उसको सीधा कर देगा।  इस विधि से आपके दुश्मन का नाश हो जाएगा और किसी को भी आपकी इस विधि का पता नहीं चलेगा। इस विधि को अमावस्या की रात में करें और उस दिन चार कील लें। अमावस्या की रात करीब 10 बजे बाद दक्षिण दिशा में काल भैरव की तस्वीर को लकड़ी की चौकी पर रख दें और अब आप भी काले आसन पर बैठ जाएं। तस्वीर के सामने सरसों की तेल में चार बाती वाला दीपक जलाएं। चारों कीलों पर मोली बांधकर भैरव के सामने कर दें और काल भैरव से प्रार्थना करें वे इस विधि को सफल करें। साथ ही उनसे ये भी कहें कि अगर आपसे इस विधि में कोई गलती भी हो तो माफ कर दें। इन सबके बाद हवन कुंड तैयार करें और हूं हूं फट स्वाहा का मंत्र बोलें। प्रत्येक मंत्र के बाद काली सरसों से आहुति दें। ये मंत्र आपको 108 बार करना है। ध्यान रहें आपको उस जगह से तब तक नहीं उठना है, जब तक ये विधि पूरी न हो जाएं और इस पूरी विधि के दौरान किसी कि भी टोक नहीं लगनी चाहिए। विधि पूरी होने के बाद पूरा सब कुछ वहीं पड़ा रहने दें और अगले दिन अपने शत्रु के घर में उस कील को लगा दें। बचा हुआ सामान बहते पानी में प्रवाहित कर दें। कील गाड़ने के बाद जब आप घर आए तो अपने पूरे घर में गंगा का छिड़काव जरूर करना न भूलें।