जीवित रहने के लिए जितना जरूरी भोजन और श्वास है, उतना ही जरूरी प्राण ऊर्जा भी है। भोजन के बिना फिर भी कुछ दिन और श्वास के बिना कुछ पल जीवित रहे जाएं, लेकिन प्राण ऊर्जा के बिना एक सेकेंड भी जिंदा रहना मुश्किल होता है। प्राण ऊर्जा नाड़ियों से प्रवाहित होती है और शरीर में सैकड़ों नाड़ियां होती है, जिसका सही रहना काफी जरूरी होता है। अब आप सोच रहे होंगे कि इतनी सारी नाड़ियों को स्वस्थ रखना शायद नामुकिन हो, लेकिन आप 2 क्षण में इनको स्वस्थ रख सकते हैं।
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स्वर विज्ञान के अनुसार सैकड़ों नाड़ियों में तीन नाड़ी इडा, पिंगला और सुशुमना मुख्य होती है। इडा बायीं नासिका छिद्र में होती है और पिंगला दायीं नासिका छिद्र में होती है।
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अगर श्वास दायीं नासिका छिद्र में चलती है तो प्राण ऊर्जा पिंगला नाड़ी में बहती है और इसे सूर्य स्वर भी कहा जाता है। वहीं जब श्वास बायी नासिका छिद्र में चलती है तो प्राण ऊर्जा इड़ा नाड़ी में चलती है और इसे चंद्र स्वर कहते हैं।
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चंद्र शीतलता और सूर्य स्वर गर्मी प्रदान करता है और ये बदलते रहते हैं। वहीं जब श्वास दोनों नाड़ियों से चल रही हो तो प्राण ऊजा्र सुशुमना नाड़ी से प्रवाहित होती है।
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सुबह जब नींद खुले तो सबसे पहले अपना स्वर चैक करें। स्वर चैक करने के लिए नासिका के एक छिद्र के आगे उंगुली रखें। अगर सूर्य स्वर चल रहा हो तो दाएं हाथ को देखें और इसी तरफ वाले गाल रगड़े। वहीं अगर चंद्र स्वर चल रहा हो तो बाएं हाथ को देखें और इसी तरफ वाला गाल रगड़ें।
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इसी तरह जिस तरफ वाला आपका स्वर चल रहा हो तो बिस्तर छोड़ते समय उस तरफ वाला पैर सबसे पहले जमीन पर रखें। वैसे तिथि के अनुसार भी स्वर को नियंत्रित किया जा सकता है। किसी भी प्रयोग को 21 दिन तक लगातार करना चाहिए। इस तरीके से न ही कभी आपको श्वास से संबंधित कोई बीमारी होगी और न ही कोई तनाव।