25 अगस्त से गणेश उत्सव की शुरुआत होने जा रही है जो इस बार 10 दिनों के बजाए 11 दिन तक चलेगी। के अवसर पर गणेशजी की पूजा का विशेष महत्व होता है। गणेशजी की पूजा में कई चीजें चढ़ाई जाती है जिसमें दूर्वा का विशेष महत्व होता है। इसके बिना गणेश जी की पूजा अधूरी समझी जाती है। भगवान गणेश को तो दूर्वा काफी प्रिय होती है, लेकिन तुलसी को इनकी पूजा में प्रयोग करने की मनाही होती है। आइए जानते है इसके पीछे का रहस्य।
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पुराणो के अनुसार एक असुर रहा करता था जिसका नाम अनलासुर था। जिसने स्वर्ग और पृथ्वी पर सभी को परेशान करता था। वह ऋषि-मुनियों,देवताओं और आम लोगों को जिंदा ही खा जाया करता था। तब सभी देवता इस राक्षस के सर्वनाश के लिए महादेव के पास प्रार्थना करने के लिए कैलाश पर्वत जा पहुंचे।
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तब शिवजी ने सभी देवी-देवताओं की बात सु्नकर कहा कि अनलासुर का अंत केवल गणेश ही कर सकते हैं। इसके बाद भगवान गणेश ने अनलासुर को निगल लिया जिसकी वजह से उनकी पेट में जलन होने लगी जो शांत नहीं हो पा रही थी। तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठ बनाकर गणेश जी को खाने को दी। तब जाकर उनकी पेट की जलन शांत हो गई। तभी से गणेश जी को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई।
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विष्णु पुराण के अनुसार एक बार तुलसी ने गणेश जी को देखकर उन पर मोहित हो गई फिर उनसे विवाह करने की इच्छा जाहिर की, लेकिन गणेशजी ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इस बात को लेकर तुलसी जी ने उन्हें गुस्से मे दो विवाह करने का श्राप दे दिया था।
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तब गणेशजी ने भी तुलसी को श्राप देते हुए कहा कि तुम्हारा विवाह भी एक असुर से होगा। जिसके बाद तुलसी को अपनी गलती का एहसास हुआ और भगवान गणेश जी से माफी मांगी। तब उन्होनें ने कहा कि तुम कलयुग में मोक्ष देने वाली होगी लेकिन मेरी पूजा में तुलसी चढना शुभ नहीं माना जाएगा। फिर तभी से इसे वर्जित माना जाता है।